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Continue"राणकदेवी" सौराष्ट्र की उन इनी-गिनी सती-साधवी नारियों में से हो चुकी जैं जिन पर आज भी भारत को गर्व है। "राणकदेवी" के त्यागपूर्ण सतीत्व की कहानी कोई कपोल-कल्पित नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक सत्य है जिसे गुजरात एवं सौराष्ट्र देश का बच्चा-बच्चा जानता है।
महाराजाधिराज सिद्धराज गुजरात का महा पराक्रमी एवं शूरवीर शासक था। सत्ता और वैभव, सब कुछ होते हुये भी निसन्तान होने के कारण सिद्धराज हमेशा दुखी रहा करता था। उसके दुःख की सीमा उस समय न रही जबकि एक दिन प्रातःकाल वह अपने राजमहल की गैलरी से प्राकृतिक-सौन्दर्य-सुधा पान कर रहा था। उसी समय नीचे राज-मार्ग पर झाडू लगाती हुई मेहतरानी ने उसकी तरफ से मुंह फिरा लिया। निसन्तान राजा का मुंह देखना भी उसने पाप समझा। इस घटना से वह बहुत ही मर्माहत हुआ और अन्त में उसने आत्महत्या करने का निश्चय किया। एक दिन वह शिव के मन्दिर में जाकर शिवलिंग के सामने अपना बलिदन करना चाहता है कि इतने में नीलकण्ठ नामक बारोट आकर उसे सूचित करता है कि "राणकदेवी" नाम की एक पद्धिनी युवती से वह उसका लग्न निश्चित कर चुका है। साधाराज कुम्भार की कन्या जानकर पहिले तो सिद्धराज आपत्ति करता है किन्तु बारोट के आश्वासन दिलाने पर कि वह कुम्हार की नहीं किन्तु एक राज-वंश की कन्या है, वह राजी हो जाता है और बारोट को अपना खांडा देकर राणकदेवी से लग्न भेजता है।
किन्तु विधाता को कुछ और ही मन्जूर थी।
एक दिन की बात है, जूनागढ़ के एक बहुत बड़े मेले में शरीक होने के लिये राणकदेवी अपनी सखी सहेलियों के साथ गई हुई थी कि उसी समय भीषण आंधी और तूफान शुरू हो जाता है और उस आंधी में उसकी ओढ़नी उड़ा कर एक शेर के पंजे में जा फंसती है। शर्म की मारी राणक एक बैल गाड़ी की आड़ में शरण लेकर उस शेर से मोर्चा खेती है किन्तु वह ओढ़नी बिना लाचार रहती है कि इसी बीच सौराष्ट्र का राजा राखेंगार मेर के वेश में आता है और अपना कमर फेटा (चादर) उसकी तरफ फेंक देता है। इस प्रकार राणकदेवी अपनी लाज ढांकती है। इस छोटीसी घटना ने राणकदेवी के ऊपर जादू का असर किया और उसने भनही मन राखेंगार को अपना पति मान लिया कारण कि जिसकी चादर उसने एक बार ओढ़ ली उसी की वह हमेशा के लिये हो जाना चाहा। यही था उस सती का कौल! राखेंगार भी दिल जान से राणकदेवी पर मोहित हो जाता है।
नीलकंठ बारोट का महाराजा सिद्धराज का खांडा वापस लेकर जाना पड़ता है। वह राणकदेवी की शादी राखेंगार के साथ नहीं देख सके इसलिये अपनी आंखें फोड़ लेता है और अपमान की आग में जलता हुआ जाकर सिद्धराज को भड़का कर राखेंगार के विरूद्ध युद्ध घोषण करा देता है।
सिद्धराज की सेना जूनागढ़ को घेर लेती है किन्तु किले के दर्वाजे बन्द होने के कारण वह अन्दर नहीं जा पाती और इस तरह 12 वर्षों तक जूनागढ़ के चारों ओर पड़ाव डाल कर पड़ा रहना पड़ता हैं। सिद्धराज के कूटनीतिज्ञ मन्त्री साजन मेहता की चालाकी से राखेंगार का भान्जा देशण फूट कर सिद्धराज की तरफ आ मिलता है और उसकी मदद से गुप्तद्वार की राह सिद्धराज की पूरी सेना गढ़ में प्रवेश कर जाती है और सिद्धराज राखेंगार को कत्ल कर देता है। इसके बाद वह राणकदेवी को अपनी प्रियतमा बनाना चाहता है। उसके इन्कार करने पर उसके देखते ही देखते उसके दो छोटे बेटों को भी मौत के घाट उतार देता है और राणकदेवी को राज-वैभव का लालच दिखा कर अपने साथ लग्न करने के लिये फुसलाता है- राणकदेवी कहती है, "हां, मैं लग्न करने के लिये तैयार हूं।"
तो क्या राणकदेवी ने सिद्धराज से लग्न किया?
इसका जवाब रजत पट देगा।
(From the official press booklet)