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एक युवक जो अकेला सड़क पर चला जा रहा था, अचानक "रामनगर" की तरफ जाने वाले साइनबोर्ड को देखकर रूक जाता है, उसकी आंखों में खून उतर आता है, उसे उसके साथ हुई घटनायें याद आती है और आंखें आसुओं से भर जाती है।
मिस्टर दिनेश ए.ऐस.पी. जो उस रास्ते से गुजर रह थे, उन्हें उस युवक पर शक हो जाता है, तलाशी लेने पर उसके पास से एक रामपुरी चाकू मिलता है, वो उसे पकड़कर पुलिस स्टेशन ले जाता है। काफी पूछताछ के बाद भी जब वो जबान नहीं खोलता, तो उसे यातनायें दी जाती हैं लेकिन वो पुलिस के चंगुल से भाग निकलता है। पुलिस उसे रोकने के लिये गोली चलाती है, गोली उसकी बांह में लग जाती है फिर भी वो रूकता नहीं - भागते भागते वो एक बंगले के सामने गिर जाता है और बेहोश हो जाता है- डाक्टर सुनिता उसे इस हाल में देखकर, उसे उठकर अपने घर में ले आती है, एक डाक्टर होने के नाते अपना फ़र्ज अदा करती है।
जब युवक होश में आता है और सामने डाक्टर सुनिता को पाता है तो शुक्रगुजार निगाहों से उसकी तरफ देखता है, इसी बीच पड़ोस की एक चंचल लड़की रजनी आ जाती है। युवक को देखकर उसे बड़ा आश्चर्य होता है। उससे तरह-तरह के सवाल पूछती है। डाक्टर सुनिता परेशान होकर कह बैठती है कि ये - मेरे - वो - है - रजनी युवक को डाक्टर का प्रेमी समझती है और खुशी से झूम उठती है।
डाक्टर सुनिता जब युवक का फोटो अखबार में देखती है तो उसे मज़बूर करती है कि वो उसे अपने बारे में बताये।
युवक अपने बारे में बताना शुरू करता है- "मैं और प्रीती नाम की एक लड़की जो बहुत अमीर खानदान से थी, एक ही कालेज में पढ़ते थे। वो लड़की मुझसे बहुत प्रेम करती थी - मेरे मना करने के बाद भी कि मेरा तुम्हारा मिलन कभी नहीं हो सकता क्योंकि तुम्हारे और मेरे बीच में दौलत की एक बहुत बड़ी दीवार खड़ी है, तुम्हारे पिताजी यह रिश्ता कभी मंजूर न करेंगे, फिर भी उसने ज़िद करके ये बात अपने पिता को बता दी। उसके पिता आग बबूला हो गये। उन्होंने मुझे प्रीती से दूर करने के लिये मेरे घर को तबाह कर दिया। इसी सदमें से मेरे पिताजी चल बचे। मैं और मेरी बहन घर से बेघर हो गये, लेकिन प्रीती ने फिर भी मुझसे प्रेम करना नहीं छोड़ा। यहाँ तक कि वो मेरे साथ भाग निकलना चाहती थी। मेरी बहन ने जब ये प्यार देखा तो उसने रघू से ब्याह कर लिया ताकि मेरे सर पे बहन की जिम्मेदारी न रहे और मैं और प्रीती शादी कर लें।
लेकिन रघू जो बहुत ही कमीना और गिरा हुआ आदमी था अपने स्वार्थ के लिये अपनी पत्नी सीता को एक फोरेस्ट आॅफीसर के हवाले कर दिया। सीता ने अपने इज़्जन बचाने के लिये संघर्ष किया लेकिन वो जख़्मी हो गई और पूरी कहानी सुनाकर उसने सूरज की गोद में दम तोड़ दिया। सूरज ने अपनी बहन का बदला लेने के लिये उनपे हमला किया लेकिन खुद फंस गया। उन लोगों ने सीता की हत्या के इलज़ाम सूरज पर थोप दिया। सूरज अपनी जान बचाकर वहाँ से तो भाग निकला लेकिन कानून की निगाहों में क़ातिल क़रार दिया गया।
डाॅक्टर सुनिता ने सूरज की राम कहानी सुनने के बाद उसका साथ देना मंजूर कर लिया क्योंकि वो भी उन लोगों से अपनी बहन के खून का बदला लेना चाहती थी।
रजनी ने जब सूरज का फोटो अखबार में देखा तो खुशी से फूली नहीं समाई और अपने बड़े भाई ए.ऐस.पी. दिनेश को बता दिया कि यही सुनिता दीदी का मंगेतर है। ए.ऐस.पी. दिनेश ने फौरन अपने डिपार्टमेंट को खबर दी कि डाक्टर सुनिता का मकान चारों तरफ से घेर लो - लेकिन उससे पहले रजनी ने वहाँ पहुँचकर सूरज को भगा दिया।
बंसीलाल और उसके साथियों को जब पता चला कि सूरज को सुनिता देवी ने पनाह दी थी, तो उन्होंने सुनिता को पकड़ लिया और उसे मजबूर किया कि वो सूरज को क़सबे से दूर एक उजाड़ मकान में बुलाये। सूरज जब उस मकान में पहुँचा तो सुनिता आखरी सांस ले रही थी। उसने सूरज को बंसीलाल और साथियों के बारे में सब कुछ बता दिया। लेकिन इससे पहले कि वो जख़्मी सुनिता को लेकर वहाँ से निकल सके पुलिस ने उसे पकड़ लिया।
सूरज को सुनिता का खून करने के जुर्म में फांसी की सज़ा सुनाई गई। प्रीती और रजनी निर्दोष सूरज को दी गई सज़ा के लिये आश्चर्य में डूग गये।
सूरज क्या फांसी के फ़न्दे से बच पायेगा?
बंसीलाल और उसके साथियों से अपनी तबाही का बदला ले पायेगा?
प्रीती अपने पवित्र पयार को बरक़रार रख पायेगी?
इन सवालों का जवाब आपको "क़ैदी" देखने के बाद ही मिलेगा।
(From the official press booklet)