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Pataal Bhairavi (1951)

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उज्जयिनी के चैक में चारिणी गा रही थी, "जहाँ धैर्य, साहस, वहीं लक्ष्मी" - रामू सबके साथ सुन रहा था।

रामू था तो मालन का लड़का; लेकिन था धीर, वीर, साहसी। इसीलिये एक दिन उसने रानी जी के संबंधी धीरसिंह जी को, जो प्रजा पर अन्याय करते थे, पीट दिया। महाराज ने रामू को बुलाया, लेकिन धैर्य साहस को देखकर छोड़ दिया।

रामू, इन्दु (राजकुमारी) से प्रेम करता था। राज उद्यान में रहने से वे हमेशा मिला करते थे। लेकिन एक दिन साँप दिखाई देने से ज्योतिषी ने कहा कि राजकुमारी के जीवन में किसी भयानक तान्त्रिक मान्त्रिक के आने का संकेत है। सौतेली माँ ने, जो इन्दु से जलती थी और राजकुमारी का विवाह धीरसिंह से करवाना चाहती थी, महाराज से कहकर इन्दु का बाग़ में जाना मना करवा दिया।

राजकुमारी से न मिल सकने के कारण रामू बैचेन हो उठा और राजमहल की दीवार फाँदकर अन्दर आ गया। धीरसिंह ने उसे गिरफ़्तार कर लिया। वह महाराज के सामने लाया गया। महाराज को इन्दु और रामू के प्रेम का पता था। महाराज ने कहा पहले सामथ्र्यवान बनो फिर राजकुमारी के हाथ की बात करना। अपनी हैसियत को मत भूलो।

उधर ज्योतिषी के बताये अनुसार नेपाल का जादूगर देवी का बताया हुआ शिकार ढूँढने के लिये उस नगर में आया। वह शिकार था रामू। जादूगर रामू को राजकुमारी के साथ विवाह लालच देकर पाताल-गुफा में ले गया।

जब रामू नहाने के लिये गया तो पुष्करणी देवी ने बताया कि जादूगर उसकी बलि चढ़ाना चाहता है। रामू नहाकर गुफा में गया और चालाकी से जादूगर को देवी की बलि चढ़ा दिया। देवी प्रसन्न हुई। उसे अपनी प्रचंड शक्ति की प्रतिमा दी।

रामू ने देवी से अपनी झोपड़ी को राजमहल बनाने और उसे उज्जयिनी पहुँचाने को कहा।

अचानक महल देखकर महाराज को आश्चर्य हुआ। वे महल देखने गये और राजकुमारी की शादी रामू से तय की।

नगर में चर्चा फैली। जादूगर का चेला जो वहीं था, यह ख़बर सुनकर घबराया कि गुरु को क्या हुआ। दूरबीन से देखने से मालूम हुआ कि गुरु मारा गया। वह वहाँ से भागा और संजीवनी से गुरु को जीवित किया।

जब जादूगर लौट रहा था तो रास्ते में धीरसिंहजी मिले, जो राजकुमारी के साथ विवाह न होने से फाँसी की तैयारी कर रहे थे - उन्हें जादूगर ने विवाह का लालच देकर पाताल भैरवी की प्रतिमा मंगा ली। और देवी से कहा - इन्दु को यहाँ लाओ और महल समेत हमें हमारी गुफा में पहुँचा दो। सब ग़ायब हो गये। धीरसिंहजी अकेले रह गये। धीरसिंह ने महल में आकर सारा क़िस्सा सुनाया।

रामू और लच्छू राजकुमारी को ढूंढने निकले। हारे थके एक पेड़ के नीचे सो गये।

उधर जादूगर राजकुमारी को अपनी बनाना चाहता था। मगर राजकुमारी ने एक न मानी। गुस्से में आकर जादूगर ने पाताल भैरवी से रामू को लाने के लिये कहा। रामू प्रगट हुआ। जादूगर ने रामू को देवी की बलि चढ़ाने के लिये गुफा में डाल दिया।

लच्छू ने जो रामू की खोज करता करता भूतों के चंगुल में फंस गया था, चालाकी से जादू के जूते, जिनसे चाहे जहाँ जा सकता था और जादू का दुशाला, जिससे ग़ायब हो सकता था, प्राप्त किये। उनकी मदद से रामू को छुड़ाया और राजकुमारी के पास भेजा और ख़ुद जादुगर के चेले को बेहोश करके उसके कपड़े पहनकर जादूगर के पास गया। वहाँ जादूगर को बातों में फँसाकर उसकी शक्ति का पता लगा लिया। फिर उन जूतों और दुशाले की मदद से जादूगर को मारा। सोने का महल और राजकुमारी सहित पाताल भैरवी की सहायता से उज्जयिनी पहुँचे।

महाराज ने बड़ी धूमधाम से राजकुमारी का विवाह रामू से किया।

उज्जयिनी की चारिणी की भविष्यवाणी सच हुई "जहाँ धैर्य, साहस, वहीं लक्ष्मी।"

(From the official press booklet)