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Mahabali Hanuman (1980)

  • LanguageHindi
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भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर, अंजनी को वरदान दिया, मेरा अंश ग्यारहवाँ रुद्र तुम्हारी कोख से जन्म लेगा, और पवन पुत्र के नाम से पूजा जायगा। वरदान सुफल हुआ।

जन्म से चंचल पवन पुत्र ने, एक दिन सूर्य को बिम्बाफल समझ कर निगल लिया, तीनों लोक में हाहाकार मच गया। क्रोधित इन्द्र ने पवनपुत्र पर बज्र से प्रहार कर दिया, अपने मानस पुत्र को मूर्छित देख कर, पवनदेव ने अपनी गति रोक दी, घबरा कर सारे देवता ब्रह्मा के साथ अंजनी के पास पहुँचे। ब्रह्मदेव ने बालक की मूर्छा दूर की, सब देवताओं ने पवनपुत्र को वरदान दिये, शंकर ने कहा इसकी प्रीत श्रीराम के चरणों में बनी रहेगी।

नाम सुनते ही अनुमान ने पूछा, कौन है श्रीराम? माता ने समझाया बेटा वे ही जगदाधार-पालनहार हैं। श्रीराम को ढूंढने के लिये बालक हनुमान निकल पड़ते हैं। तीनों लोक में ढूंढा, किन्तु श्रीराम के दर्शन नहीं हुये। निराश हनुमान को शबरी मिली, उसने बताया, एक दिन श्रीराम किष्टिकन्धा में अवश्य पधारेंगे।

शबरी की वाणी सत्य हुई हनुमान ने अपने मित्र सुग्रीव की एक दिन श्रीराम से मित्रता कराई। सुग्रीव ने हनुमान के नेतृत्व में वानरों को सीता का पता लगाने का आदेश दिया। हनुमान समुद्र लांघ कर लंका पहुँचे, और माता जानकी को श्रीराम की मुद्रिका दी, उसी प्रकार लोट कर श्रीमराम को जानकी की चूड़ामणि दी। श्रीराम-लक्ष्मण ने वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण किया, तथा सीता जी का उद्धार किया। चैदह वर्ष वनवास के पश्चात् अयोध्या में श्रीराम के राजतिलक का उत्सव हो रहा था। काशीनरेश शकुन्त जल्दी अयोध्या पहुँचना चाहते थे, इस प्रयास में उनके घोड़े भड़कर विश्वामित्र के आश्रम में घुस गये, यज्ञ वेदी टूट गई मुनिविश्वामित्र ने श्रीराम से वचन लिया, कि वे सूर्यास्त से पहले शकुन्त का वध करेंगे।

शकुन्त जीवन रक्षा के लिये, अंजनी की शरण लेते हैं, अंजली अपने पुत्र हनुमान को याद करती है, हनुमान अपनी माता के शरणगत् की रक्षा का वचन लेते हैं। स्पष्ट है, राम हुनमान युद्ध, स्वामी सेवक युद्ध, भक्त भगवान युद्ध परिणाम जानना चाहते हैंत तो, स्क्रीन पर देखें।

(From the official press booklets)

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