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Kapurush Mahapurush (1965)

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  • Release Date1965
  • GenreComedy
  • FormatB-W
  • LanguageBengali
  • Run Time66 min
  • Length3748.43
  • Number of Reels14
  • Gauge35mm
  • Censor RatingU
  • Censor Certificate Number69761
  • Certificate Date29/08/1975
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का पुरुष (पूर्वार्ध)

युवक कथाकार अमिताभ राय एक फिल्मकी कहानी लिखनेके लिए और उसकी सामग्री जुटानेकी फिक्रमें कलकत्तासे जलपाईगुड़ी क्षेत्रके ’हासीमारा’ नामक स्थानके लिए चल पड़ता है। नियत स्थान तक पहुंचनेसे पूर्व, मध्यवर्ती एक छोटेसे नगरमें (उसे कसबा कहना अधिक उपयुक्त होगा) कथाकार महोदयकी टैक्सी बिगड़ जाती है, जिसके सुधरनेमें पर्याप्त समय लगनेकी सम्भावना है। उस कसबेके एक प्रतिष्ठित धनी व्यक्ति श्री विमल गुप्त, जो पेशेसे चायके बगीचेके स्वामी है, अमिताभको रात्रि-यापन के लिए अपने घरपर आमन्त्रित करते हैं।

पर यह क्या? विमलके साथ उसके घर पहुंचकर अमिताभ चकित रह गया। वहां उसने करुणाको श्रीमती विमल गुप्तके रूप में पाया। करूणा, जिसे कभी उसने प्यार किया था। बदलेमें करूणाने भी खुदको उसके प्यारमें उत्सर्ग कर दिया था, पर अभावसे घबड़ाकर अमिताभने करूणाके प्रस्तावको टाल दिया था। तभीसे वह अकेला रह गया था। संसारकी भारी भीड़में न जाने करुणा कहां चली गयी थी। विमल एक दिलदार मेजबान निकला। अपनी पत्नी करुणा और अमिताभके पूर्ववर्ती सम्पर्कसे अनभिज्ञ वह अपने मेहमानकी खूब खातिर करता है। शराब और लजीज खानोंसे वह अमिताभका स्वागत करता है और शामकी रंगीनियोंमें विमल खुले रूपसे अमिताभको अपने बारेमें बहुत कुछ बतला देता है।

जितना अधिक अमिताभ विमलको समझता है, उतना ही वह करुणाके प्रति सहानुभूतिशील हो उठता है, क्योंकि वह पाता है कि ऐसे पतिको पाकर कोई भी नारी सुखी नहीं हो सकती।
अमिताभ अब अवसर ढूंढता है करुणासे यह कहनेके लिए कि अब वह जीवनमें प्रतिष्ठित है; अब उसमें करुणाको उसके पतिके पाससे ले जानेकी हिम्मत भी है। इस प्रकार अपनी पिछली बेवफाईकी क्षतिपूर्ति वह करना चाहता है। पर करुणा बहुत ही संयमी और चतुर थी। उसने शान्त बने रहकर अपनी अनुभूतियोंको अव्यक्त ही रखा।

दूसरे दिन सुबह यह तय होता है कि टैक्सीके ठीक होनेकी प्रतीक्षा न करके शामकी ट्रेनसे अमिताभ हासीमारा चला जायेगा। अमिताभके जानेसे पहले विमल, करुणा और अमिताभ तीनों पिकनिकपर जाते हैं। पिकनिकके दौरान विमलको नींद आ जाती है और वह मेहमान और पत्नीके मध्य पनप रहे नाटकसे बेखबर खर्राटे भरने लग जाता है।

इधर विमल खर्राटे भर रहा होता है, उधर नाश्ते के कागजपर अमिताभ करुणाको अपना यह सन्देश लिख कर दे देता है- “मैं स्टेशनपर तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा। अगर तुम मुझे अभी भी चाहती हो, तो चली आओ। इस बार मैं तुम्हें छोड़ नहीं दूंगा?”

शामको अमिताभ स्टेशनपर करुणाकी प्रतीक्षा करता है। एक बार जिस युवतीको अपनानेमें हिचककर उसने खुदको ’कापुरुष’ साबित किया था, जबकि वह प्यारके नामपर खुद चलकर उसके पास आयी थी, आज वह उसी युवतीको, जो अब एक पत्नी है, चुपकेसे अपने साथ भाग चलनेको उकसाकर अपने पुरुषत्व (या फिर बुजदिली?) की धाक जमानेकी खातिर बेकरार सा है। ज्यो-ज्यो ट्रेन का समय नजदीक आता जाता है, वह अधीर होता जाता है। उसके मनमें सवाल उठते हैं- क्या करुणा उसे अभी भी चाहती है? क्या अपने चरित्रहीन पतिको त्यागकर वह चली आयेगी?

ट्रेन ठीक सयम पर आ जाती है, मगर...?

महापुरुष (द्वितीयार्थ)

अपनी पत्नीकी मृत्युके बादसे वकील गुरुपदो मित्र भीषण मानसिक अशान्ति और उद्धेजनक स्थितियोंमें समय व्यतीत कर रहे थे। एक बार जब गुरुपदो बाबू अपनी युवा कन्या बुचकी के साथ वाराणसीसे लौट रहे होते हैं, तब उनका परिचय ’बिरिंची बाबा’ से होता है, जो गेरुआ परिधान धारण करते हैं और स्वयंको अमर महापुरुष घोषित करते हैं। गुरुपदो बाबू बाबाजीसे खूब प्रभावित होते हैं। वे बिरिंचीकी पूजा और प्रचार करने तथा उसका शिष्यत्व ग्रहण करनेका निश्चय कर लेते हैं।

पिता गुरुपदो मानसिक समस्याके समाधानके लिए ऐसा करते है, पर कन्या बुचकी अपनी निजी समस्याओं से अत्यन्त परेशान है। उसकी समस्याओंमें प्रमुख है अपने प्रेमी सत्य से निराशा। सत्य को राहपर लानेके लिए बुचकी सत्य को बतलाती है कि वह संसार तथा सत्यका परित्याग करके बिरिंची बाबाकी शिष्या बनने जा रही है।

यह सुनकर सत्य कांप जाता है। अपने प्यारको खतरे में देखकर वह अपने घनिष्ठ मित्र निवारणके पास जाता है। निवारणको सब कुछ बतलाकर वह प्रार्थना करता है कि किसी भी प्रकार बुचकी को बिरिंची बाबाके चंगुल से निकाल लिया जाये।

निवारण यह दायित्व उठा लेता है। वह बिरिंची बाबाकी एक धर्म-सभामें उपस्थित होता है और उसके वक्तव्यको गौरसे सुनता है। वह इस निष्कर्षपर पहुंचता है कि बिरिंची असलमें कोई महापुरुष नहीं बल्कि एक धृर्त है, पर इतना होशियार धूर्त, कि अपने बढ़ते जा रहे धनी और शिक्षित भक्तों से सम्मान-लाभ सहज ही में पाता जा रहा है।

निवारण निश्चय करता है कि संसारके सम्मुख बिरिंची पर पड़ी ’महापुरुषी’ चादरको वह नोच फेंकेगा। अपने  इस प्रयासमें वह उन मूर्ख भक्तोंकी भी बखिया उधेड़ कर रख देता है, जो बिरिंची जैसे धूर्तोंको ’सन्त’ ’महापुरुष’ और ’देवदूत’ के रूप में प्रतिष्ठित होने का अवसर देता है।

[From the official press booklet]