जिंदगी एक अजीब पहेली है - इसे जितना सुलझाने की कोशिश करो उतना ही यह उलझती जाती है।
दुल्हा दुल्हन की कहानी भी एक ऐसी ही पहेली है - ऐसे दो अजनबियों की कहानी जिन्हें हालात ने दुल्हा और दुल्हन बनने पर मजबूर कर दिया।
राज कुमार अक्सर रेडियो बम्बई से गाया करता है - और यही है उसके जीवन का साधन - बन्सी उसका एक दोस्त है - जो रोडियो में ड्रामा का कलाकार होने के साथ साथ फिल्मों में भी छोटे छोटे रोल किया करता है - बम्बई की एक मामूली से चाल में बन्सी रहता है - उसने राज कुमार को इस शर्त पर अपने साथ रखा हुआ हैं कि कभी उन दोनों के बीचे में कोई लड़की नहीं आयगी।
किस्मत के खेल भी कितने निराले होते हैं - इत्तफाक से राज कुमार को अहमदाबाद से उसके दोस्त रमेश की चिठ्ठी आती है - उसने लिखा है कि उसके फर्म मालिक की लड़की रेखा पहली बार बम्बई घूमने आ रही है - वह उसके रहने सहने का इन्तजाम कर दे और जहाँ तक हो सके पूरा ख्याल रखे। दो एक रोज में रेखा के पिताजी भी वहां पहुंच जायेंगे। उसने लिखा है - मुमकिन है उसका बाप खुश होकर उसे कोई तरक्की देदे।
राज रेखा को लेने स्टेशन जाता है - रेखा को होटल में रहना बिलकुल पसन्द नहीं और वह जिद करती है और चाल ही में रह जाती है - एक जवान लड़की के इस तरह साथ रहने पर चालवाले ऐतराज उठाते हैं - राज कुमार उन्हें बताता है कि दो एक रोज में उसके पिताजी आ जायेंगे और वह चली जायगी - युंही हंसते खेलते कुछ दिन बीत जाते हैं।
लेकिन वाह री किस्मत - राज कुमार को रमेश की दूसरी चिठ्ठी मिलती है कि रेखा बम्बई नहीं आई और वह हैरान रह जाता है।
वह रेखा को खूब डांटता हैं - उसे घर से निकाल देता है - बन्सी उसे वापस ले आता हैं। राज हर मुमकिन कोशिश करता है रेखा से पीछा छुड़ाने का - लेकिन हर बार उसे नाकामी ही मिलती है।
इस तरह साथ रहते रहते उसे न मालूम रेखा क्यों अच्छी लगने लगती है। एक रोज अचानक रेखा कह बैठती है-
"अब तक तो सिर्फ सुना ही था, अब पहली बार मुझे महसूस हुआ है प्यार क्या होता है।"
राज- क्या होता है?
रेखा- वही जो मुझे तुमसे हो गया है, तुमने मुझे पता दिया है, मुझे नाम दिया है, मुझे घर दिया है। उसके शब्द गीत बन जाते हैं, और व गा उठती है-
"हमन तुझको प्यार किया है जितना, कौन करेगा इतना।"
राज सुनी अनसुनी कर देता है, चालवाले जो अब तक बर्दाश्त करते आये थे, एक रोज झगड़ा उठाते हैं- और नौबत यहाँ तक आन पहुँचती है कि बन्सी और राज को चाल छोड़नी पड़े-इससे पहले ही रेखा घर छोड़कर चली जाती है- आत्म हत्या करने- राज उसे बचाता है- और कोई रास्ता न सूझने पर दुनिया का मुंह बन्द करने के लिए उससे शादी कर लेता है।
इस तरह दो अजनबी एक दूसरे के हो जाते हैं।
कुछ लोग ऐसे भी तो होते हैं जिन्हें ज्यादा खुशी रास नहीं आती। दीवाली के दिन रेखा अचानक गुम हो जाती है- राज उसे दीवानावार ढूंढता है- लेकिन उसका कहीं पता नहीं चलता- राज की दुनिया में अंधेरा छा जाता है- इसके बाद क्या होता है- यह एक भेद है- इसे जानने के लिए आपका इस तसवीर को देखना जरूरी है- इसमें संगीत है कल्यानजी आनन्दजी का, जिनके बनाए हुए गीत सुनकर आपको अपने बीते हुए दिन याद आ जायेंगे- या फिर मुमकिन है आनेवाले दिनों का कोई हसीन अक्स नजर आ जाय।
इस फिल्म को प्रोडयूसर डायरेक्टर रवीन्द्र दवे ने बड़ी मेहनत और नए ढंग से बनाया है।
(From the official press booklet)