एक ग़रीब विधवा अपने बेटे के लिये एक छिपा हुआ खज़ाना छोड़कर मरजाती है। नंदू जब बताई हुई जगह खोदता है तो उसे धन की जगह एक लकड़ी की पुतली मिलती है। वह उसे नफरत से फेंक देता है। नंदू के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता, जब फेंकी हुई पुतली में से एक जिन पैदा होता है, जो उसकी हर इछा पूरी करता है।
उसी राज्य की राज कुमारी मानसिक रोग से विक्षिप्त हो चुकी है। उसे निरोग करनेवाले के लिये बहुत बड़ा ईनाम घोषित किया है। नंदू पुतली की शक्ती का आवाहन करता है। जिन प्रगट होकर बताता है कि राजकुमारी का केवल चन्द्रलोक की राजकुमारी चांदनी ही निरोग कर सकती है, वह हर पूर्णिमा को यहां समुद्र स्सान करने आती है। यदि उस मौके का फायदा उठाया जाय तो राजकुमारी ठीक हो सकती है।
राज्य का मंत्री नहीं चाहता कि राजकुमारी निरोग हो। इसलिये वह नंदू को गिरफतार करवालेता है। क़ैद में नंदू से शंभु की मित्रता होती है, और किसी प्रकार पुतली की सहायता से वे बाहर निकल जात हैं। समुद्र के किनारे चांदनी से दोनों मिलते हैं। राजकुमारी को निरोग करने की प्राथना करते हैं। चांदनी तैयार हो जाती है, पर, अगली पूर्णिमा को वायदा करती है। अविश्वास का प्रश्न उठनेपर वह दोनों को अपने साथ ले जाती है।
चन्द्रलोक के नियमों के विव्ध उन्हें चांदनी अपने महल में छिपाकर रखती है। सरदार चन्द्रजीत के विजयोत्सव में दरबार भरा जाता है। भरे दरबार में वह चांदनी से विवाह का प्रस्ताव रखता हैै। चांदनी इनकार कर देती है। इतना बड़ा परिवर्तन? आश्चर्य! वह परेशान है। उसी समय दासी के द्वारा, राजकुमारी के महल में रहनेवाले मनुष्यों का समाचार उसे मिलता है। वह उन्हें कैद करता है, झगड़ा बड़ जाता है। नंदू शंभू और चांदनी का बिवान प्रकाश में उड़ता जा रहा है।
चन्द्रजीत अपनी शक्ति से विवान को वापस लाता है। दोनों को गिरफ़तार करता है। उनपर अत्याचार करता है, जो चांदनी अपनी आंखों से देखती है। नंदू चांदनी का विरोधी भी बन जाता है। संघर्ष और बड़ जाता है।
चन्द्रलोक के नियम तोड़ने का अपराध राजा, चांदनी और कुलपति तीनों पर है। न्याय कौन करे?
इधर पृथ्वीपर आकर मंत्री का सामना नंदू को करना पड़ता है। मंत्री राजमुकुट पहनते पहनते रह जाता है। चांदनी राजकुमारी का इलाज करती है, बकाया फिल्म परदे पर देखिये... ...
[from the official press booklet]