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कल कलथा, अब आज हुए विना फिर कल न होगा। कलका भारत मर और मिटचुक है, किन्तु उसके भस्मावशेषपर आज हम कलके भारतका निर्माण कर रहे हैं। प्रत्येक भारतवासीके आशास्थल और सुखसमृद्धिसे भरपूर भारतका निर्माण हम विदेशी सभ्यताकी सामग्रीसे नहीं कर सकते, क्योंकि वह सदियोंसे एक विशेष साँचेमे ढले हुए आजके भारतीय जीवन के लिये अनुपयुक्त हैं।
विहारके छोटेसे राज्य सुन्दरगढ़ काही उदाहरण देखिये।
महाराज वास्तवमें बहुत सुखी मालूम होते हैं, क्योंकि नृत्य कला पर जीवन निर्वाह करनेवाली नर्तकियों और संगीत जानेवाले कलावंतों के वही एक मात्र संरक्षक हैं। आजकल यद्यपि इनका अस्तित्व संकटमें है, तथापि वे अश्रुपूर्ण नेत्रोंसे दीर्घ निश्वासोंके साथ अबभी अपने उस महत्व और गौरवमय स्थानकी कहानी सुनाते हुए नहीं थकते जो उन्हें अकबर और जहांगीर के शासन कालमें प्राप्तथा।
सुन्दरगढ़ के किसान किसी साम्यवादीका (जो उन्हें यह समझाताकि वास्तवमें तुम लोग सुखी नहीं हो) संरक्षण पाये विनाही सुखी हैं। वहाँ कोई मजदूर सभा नहीं है, क्योंकि सुन्दरगढ़की सीमाके भीतर न तो कोई मिल है और न कोईबड़ा कारखाना। वहाँ दस्तकार झोंपड़ियोंमें निवास करते हैं, मजदूर सड़कों, पर रोज़ी कमाते हैं, व्यापारी धूल और मक्खीयोंसे भरपूर छोटे-छोटे बाजारों में सौदे करते हैं और किसान अपने खेतोंमें मस्त हैं।
(From the official press booklet)