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राम और लक्ष्मण, दो सुशिक्षित और बुद्धिमान युवक थे। उन्हें अपने पिता सेठ रतनलाल के प्रति अनहद भक्ति और आदर था।
सेठ रतनलाल एक समृद्ध और संपत्तिवान सज्जन थे। मगर वे यह नहीं भूले थे कि उनकी संपत्ति और समृद्धि, उनके स्वर्गीय मालिक अमीरचन्द भार्गव की देन थी। उन्हीं की सहायता और आशीर्वाद से उन्होंने जीवन में इतनी तरक्की की थी।
रतनलाल को लगा कि अपने स्वर्गीय मालिक के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का एक तरीक़ा यह हो सकता है कि वे अपने दोनों बेटों की शादी उनकी दोनों बेटियों से करके, उन्हें भी अपनी समृद्धि में शरीक करें।
वे शादी का प्रस्ताव लेकर अमीरचन्दजी की दूसरी पत्नी दुर्गादेवी के द्वार गये। वहाँ उनका सामना मक्खनलाल से हुआ। वह दुर्गादेवी का दूर का रिश्तेबार था और चाहता था कि उसकी बेटी रूपा की शादी अपने बेटे चन्दर से करे ताकि उसकी जायदाद और दौलत हड़प कर सके। मक्खनलाल की बातों में आकर दुर्गादेवी ने सेठ रतनलाल के प्रस्ताव को अभद्रता के साथ ठुकरा दिया। उनके दिल को बहुत चोट पहुँची। जब राम और लक्ष्मण को इसका पता चला तो उन्होंने इस बात का बीड़ा उठाया कि वे किसी न किसी तरह उन लड़कियों को अपने घर की बहुएँ बनाकर लायेंगे। अपने पिता का आशीर्वाद लेकर दोनों निकल पड़े दुर्गादेवी के शहर की तरफ़।
दुर्गादेवी के घर में और लड़कियों के हृदय में प्रवेश करने के लिये उन्हें क्या क्या युक्तियाँ करनी पड़ी और कैसे कैसे पैंतरे बदलने पड़े, यही “स्वयंवर” की अत्यन्त रोचक कथा है जिसपर कभी आप हँसते हँसते लोटपोट हो जाएँगे कभी आँखों से आँसू टपका देंगे और कभी वाह-वाह कर उठेंगे।
(From the official press booklet)