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Mehlon Ke Khwab (1960)

  • LanguageHindi
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एक थी आशा। एक थी बेला। आशा थी सीधी सादी, भोली भाली और बेला थी चंचल चुस्त और चुलबुली। दोनों में बड़ा बेहनापा था। एक दूसरी के बिना कोई काम नहीं करती थीं। दोनों को पेशा भी एक ही था। फिल्मों में एक्स्ट्रा थीं। दोनों का एक ही ध्येय था। पहेलियां हल करना। और दोनों रहती भी एक ही चाल में थीं। बेला और बहुत सी एक्स्ट्रा लड़कियों की तरह अकेली रहती थीं। लेकिन आशा की एक कमीनी चाची और एक चाचा भी था। ये चाचा चाची एक बड़ी उमर के बड़े दौलतमन्द जौहरी रत्तीलाल से आशा जैसे हीरे का मोल तोल कर रहे थे।

वैसे आशा और बेला का आम एक्स्ट्रा लड़कियों की तरह अरमान तो यही था कि हीरोइन बन कर फिल्म के परदे पर चमकें मगर एक पुरानी हीरोइन के इब्रतनाक अंजाम ने उनकी आंखों से परदे हटा दिये और खुश किस्मती से एक पहेली का पहला इनाम भी उनके नाम निकल आया। बस फिर क्या था हीरोइन बनने के ख्वाब अधूरे छोड़कर वे महलों के ख्वाब देखने लगीं बेला ने प्रोग्राम बनाया कि दोनों काश्मीर जाकर धनवान होने का ढोंग रचायेंगी और आंख के अन्धे गांठ के पूरे फांस कर अपनी अपनी मांग में सिंदूर भरेंगी।

घर बसाने का इरादा तो बड़ा गौरवपूर्ण था लेकिन धनवान पतियों का शिकार कोई अच्छी बात न थी। दौलत की लालच ने अपनी तारीख दोहराई दोनों लड़कियाँ अपने माहोल से भी आजाद न होने पायीं कि मुसीबतों में फंस गयीं। एक लाख रुपये के एक हार की चोरी का उन पर इल्जाम लग गया और ये बेगुनाह इस इल्जाम से बेखबर थी। हार के असली चोर ने पुलिस की तलाशी के डर से मौका पाकर हार बेला के सूटकेस में छुपा दिया। एक और साहब मोतीलाल भी इस हार को हासिल करने के लिए उनके साथ हो गये। ट्रेन चलने लगी तो एक जिन्दादिल नौजवान राजन भी उनका हमसफर बन गया।

इस लम्बे सफर में राजन और बेला की नजरें उलझ गईं। और दिल टकरा गये। राजन दौलतमन्द तो लगता ही था। राजन ने मंजिल पर पहुंचने से पहिले अपनी मंजिल पाली। सीधी सादी आशा काश्मीर पहुंची तो एक ड्रायव्हर को दिल दे बैठी। यहां बेला और राजन की मुहब्बत चोटी पर पहुंची तो राजन बेला से कतराने लगा। और काश्मीर पहुंचकर आशा और बेला को भी पता चला कि ना सिर्फ उन पर हार की चोरी का इल्जाम है बल्के हार भी उनहीं के पास है। उधर चोर मुसल्सल कोशिश करने लगा कि हार उनके पास से चुरा ले मगर चुरा न सका। आशा और बेला हार से हर तरह पीछा छुड़ाने लगी मगर हर दफा वे उनके गले पड़ गया। अब एक तो हार का उनके लिये बड़ा मुश्किल सवाल था और दूसरा शौहरों का।

हार किसको मिला और क्योंकर मिला? जिन्दादिल दौलतमन्द नौजवान राजन कौन था? और बेला से क्यों कतराने लगा? आशा की शादी क्या ड्रायव्हर से हुई? चाचा चाची और रत्तीलाल को आशा मिले या नहीं? मोतीलाल अपने मकसद में कामयाब हुआ या नहीं? आखिर वह था कोन?

इनके दिलचस्प जवाबों के लिये मुलाहिजा फरमाइये। फिल्म "महलों के ख्वाब"।

(From the official press booklet)