राजमुकुट और सिंहासन के लिये किये गये अनेक छल कपट और षड़यंत्रों से इतिहास के पृष्ठ भरे पड़े है। राजनगर के महाराज ने मरने से पहले अपने पागल पुत्र प्रिन्स प्रताप के बदले अपने नन्हे भतीजे कुमार किरीट को रियासत का उत्तराधिकारी बनाकर वसीयत नामा लिख दिया था। यह महाराज की दूर अन्देशी थी परन्तु महाराज की मृत्यु के उपरान्त राज्य की संचालिका महारानी- प्रिन्स प्रताप की माता- इस व्यवस्था से नितान्त असन्तुष्ट थीं इसलिये उन्होंने इसका घोर विरोध किया और अन्ततः राजकर्मचारियों और उनके बीच मत भेद का अपार महासागर लहराने लगा। बस, यहीं से हमारी फ़िल्मी कहानी शुरू होती है।
कुमार किरीट अपने अंगरक्षक कैप्टन दिलीप और विश्वासपात्र सेवकों के साथ राजनगर से कुछ दूर एक पहाड़ी मुकाम पर पड़ाव डाले पड़ा था। उसके साथ वफ़ादार घोड़ा बहादुर और कुत्ता टाईगर भी था और साथ ही दो विदूषक जनरल भड़कसिंह तथा कर्नल सड़कसिंह भी थे। एक दीन कुमार कीरीट अपने कमरे में दिलीप से चांदमारी सीख रहा था। यकायक बदमाशों ने उसपर आक्रमण किया और दिलीप को बेहोश करके किरीट को उठा कर भागे। टाईगर कुत्तेने उन्हें देखा और भूँक भूंक कर बहादुर को राम-रहीम को बुलाने के लिये भेजा और खुद बदमाशोंके पीछे दौड़ा। राम-रहीम के आने पर दिलीप ने उन्हें, यह समाचार सुनाने के लिये, दीवानजी के पास रवाना कर दिया और ख़ुद इस बात की प्रतिज्ञा की कि जब तक कुमार किरीट का पना न चले तब तक वह राजधानी में क़दम नहीं रखेगा। कुमार किरीट के गुम होने की ख़बर फैलते ही राजनगर में हाहाकार मच गया। सबसे अधिक दुःख हुआ दीवान अब्दुल रशीद, राजकुमारी आशा, और उसकी हमजोली कलादेवी ने भी यह दुखद समाचार सुना। कला अपनी जासूसी शुरू कर दी। और सफल भी हुई। रात को टाईगर महल में आया और कला ने उसी के द्वारा अपने भाई दिलीप को संदेश भेजा कि वह वासधान रहे, राजनगर आने में जान का ख़तरा है।
टाईगर भी चुप चाप बैठनेवाला जीव न था। उसने बदमाशों के अड्डे का पता लगा कर ही दम लिया। उसने कुमार किरीट की मुश्कें खोल दीं। इतनेही में दो बदमाश अन्दर दाखिल हुए। एक की नज़र टाईगर पर पड़ी। उसने रिवाल्वर निकाली लेकिन किरीट ने उसका हाथ काट खाया और वार खाली गया। टाईगर वहां से भाग निकला। बदमाशों ने कुमार किरीट को कस कर एक खम्भे से बांध दिया।
कुमार की तलाश में निकले हुए राम रहीम और दिलीप ने टाईगर की आवाज़ सुनी और उसके पीछे हो लिया। दिलीप ने आते ही बदमाशों पर हमला किया। खूब घमसान लड़ाई होने लगी। कुछ बदमाशों ने कुमार किरीट को उठा कर बाहर खड़ी हुई एक मोटर में डाल दिया। टाईकर किरीट के हाथ पैर खोलने लगा और बदमाश उसकी जान लेने पर उतारू हुए लेकिन उसका बेज़बान और प्यारा दोस्त बहादुर यह कैसे बर्दाश्त कर सकता था। बहादुर ने बदमाशों के छक्के छुड़ा दिये। आखिर का दो तीन बदमाशों ने मिल कर दिलीप का पकड़ लिया। ज़ालिमसिंह किरीट को उठा कर भागने की तैयारी कर ही रहा था इतने में दिलीप की तलाश में निकले हुए राम-रहीम भी वहां आ पहुंचे। लड़ाई फिर शुरू हुई। किरीट मोटर में बेहोश पड़ा था। इस अवसर से लाभ उठाकर जालिम सिंह ने मोटर स्टार्ट कर दी और मोटर तीव्र गति से पहाड़ के ढालू रास्तेपर दौड़ने लगी। दिलीप उछल कर ज़ालिमसिंह पर कूद पड़ा। मोटर उसी गति से दौड़ी जा रही थी। एक ज़बरदस्त धमाका हुआ। दिलीप और ज़ालिम मोटर से नीचे गिरे और ड्राईवर के बिना मोटर बे काबू हो गई। टाईगर उछल कर मोटर में आ रहा और अगले दोनों पैर स्टीरिंग व्हील पर टेक कर मोटर को गति को नियंत्रित किया। किरीट को संकट में देख कर राम-रहीम भी दौड़े और एक एक पेड़ से रस्सी के सहार झूल झूल कर कुमार को उठा लिया। टाईगर नीचे कूद पड़ा और मोटर पहाड़ की बलन्दी से घाटी में गिर कर चकना चूर हो गई।
टट्टा की आड़ में शिकार खेलने-वाली महारानी को खबश्र न थी कि एक शिकारी उसकी ताक में भी लगा हुआ है। जैसे ही महारानी ने पत्र लिख कर समाप्त किया वैसे ही खिड़की से एक हाथ बरामद हुआ और पत्र छीन कर पलक मारते ही ग़ायब हो गया। सिपाहियों को साथ लेकर रानी ने भगनेवाले का पीछा किया। जते जाते कुमारी आशा के कमरे की तरफ़ से कुछ आवाज़ सुनाई दी। सब दौड़कर वहीं गये। कुमारी आशा फ्रश पर बेहोश पड़ी थी। दिलीप ने अच्छी तरह सोच समझ लिया था कि राजनगर जाने में जान की सलामती नहीं है अतएव उसने एक किसान का आश्रय लिया। उसने निश्चय किया कि राम-रहीम के साथ कुमार किरीट का राजधानी में भेजकर वह चुप चाप षड़यंत्रकारियों की टोह में लगा रहेगा। कुमार किरीट को लेकर राम-रहीम राजमहल में आये। उन्होंने अब्दुल रशीद से कहा कि कप्तान दिलीप न जाने कहां ग़ायब हो गये। दीवानजी को बड़ा सदमा हुआ। महारानी ने सलाह दी कि कैप्टन अजय की किरीट का बॉडीगार्ड बनाया जाय लेकिन अब्दुल रशीद ने इसे सवीकार न किया। महारानी नाराज होकर अपने कमरे में चली आई और सिपाही को पुकारा। एक कोने में छिपा हुआ नक़ाबपोश दिलीप हाजिर हो गया और उसे चेतावनी दी कि ख़बरदार! किरिट का बाल भी बांका न होना चाहिये वर्ना ख़ैर नहीं। महारानी की चीख़ सुन कर अजय वहाँ दौड़ा आया। दिलीप और अजय में ख़ासी मार काट मच गई। अन्ततः अजय को चकमा देकर दिलीप वहां से भाग निकला। सिपाहियों ने पीछा किया। सारे महल में भाग दौड़ मच गई। उछलता कूदता दिलीप आशा के कमरे में पहुँचा और निगाहें चार होते ही नक़द दिल खो बैठा। वहां से भागकर वह महल के तहख़ाने का दरवाजा बन्द करवा दिया। अब धीरे धीरे पानी भरना शुरू किया गया और साथ ही तहख़ाने की छत भी नीचे धँसने लगी। मोत चारों तरफसे मुँह फाड़े खाने को तैयार नज़र आती थी। घबराहट के मारे दिलीप वह जोर जोर से “टाईगर” “टाईगर” चिल्लाने लगा। टाईगर आवाज़ सुनते ही आ पहुँचा और कमाल चालाकी से दिलीप को मौट के मुँह से निकाल लिया।
इस तरफ़ महारानी अजय और ज़ालिमसिंह से मिल कर किरीट के जीवनप्रदीप बुझाने का षड़यंत्र रच रही थी।
आशा के घायल किल की भी कुछ अजीव ही हालत थी। एक बार नक़ाबपोश चितचोर को फिर जी भर देखने की हसरत अभी बाक़ी थी। उसने कला से नकाबपोश के बारे मे पूछ ताछ की लेकिन चंचल कला ने उसे बातों बातों ही में टाल दिया। कला ने आशा को महल की मौजूदा हालत से आगाह किया। आशा ने भी कला का साथ देना स्वीकार किया। “टॉमी” नामक मुत्ते को साध कर कला फिर अपने काम में लगी।
नेक नियत और पाक नीयत दीवान अब्दुल रशीद की मौजूदगी में महारानी किरीट का कुछ भी न बिगाड़ सकती थी इस लिये अजय की मदद से उसने एक गहरी चाल चलते का इरादा किया। इसने सोचा कि रियासत के दस्तावेज उड़ा कर चोरी का इल्ज़ाम अब्दुल रशीद पर लगाया जाय। आशा और कला रानी के इरादे से आगाह थीं। अजय के कमरे से, टॉमी कुत्ते के द्वारा कला ने तिजोरी की असली चाबी मंगवा कर उसकी जगह एक नकली चाबी रखवा दी। आशा और कला तिजोरी खोल कर दस्तावेज निकाल ही रही थी कि रानी के आने की आहट हुई। दोनों छिप गई। रानी ने हाथ बढ़ा कर दस्तावेज उठा लिये; इतने ही में दीवान की आवाज़ सुनाई दी- “महारानीजी, काग़ज़ात मुझे दे दीजिये”। मारे घबराहट के रानी के हाथ से कागज़ात छूट कर रद्दी की टोकरी में गिर पड़े। टाॅमी कुत्ते की नज़र उन पर पड़ी और वह उचल कर टोकरी में बैठ गया। रानी रे शोरो गुल मचाया। अजय और सिपाहियों ने आकर दीवान अब्दुल रशीद को गिरफ्तार कर लिया।
ज़ालिमसिंह दस्तावेजों वाली टोकरी-जिसमें टॉमी बैठा था- उठा कर भागा। टाईकर मदद के लिये दौड़ा और ज़ालिम की मोटर में पंक्चर कर दिया। अब ज़ालिम घोड़े पर चढ़कर भागा। आशा ने उसका पीछा किया। ज़ालिम सर हधेली पर रखे भागा जा रहा था लेकिन टाईगर यकायका उस पर टूट पड़ा। ज़ालिमसिंह टोकरी के साथ घम् से नीचे आ गिरा। मौक़ा पा कर टॉमी बहार निकल आया और काग़ज़ात मुंह में दबा कर वहां से भागा।
महारानी और अजय की साज़िश से दीवानजी गिरफ्तार हो गये। अब किरीट की ज़िन्दगी बड़े ख़तरे में थी। कला ने सड़क भड़क को उकसा कर किरीट को राजमहल से बाहर भेजने का इन्तेज़ाम किया। अफ़सोस! बाहर निकलने के सारे रास्ते महारानी ने पहले ही से बन्द करवा दिये थे।
टाईगर के चारों तरफ आग सुलगा कर बदमाहश भाग गये थे। टॉमी और दिलीप भी मुसीबत का शिकार हो रहे थ। दीवानजी कैदख़ाने में थे। राम-रहीम भी दुश्मन के चंगुल में घँसे थे। ऐसी विषम और भयंकर परिस्थिति यकायक कैसे पलट गई? सड़क भड़क किरीट को महल से बाहर निकालने में सफल प्रयास हुए या नहीं। कैप्टन अजय और बदमाशों के दल का क्या फैसला हुआ? टॉमी, टाईगर और बहादुरने क्या कमाल कर दिखाया?
इन सब प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर सिर्फ रूपहरी परदा ही दे सकता है।
(From the official press booklet)