When Raju's eyes opened on this world, his mother's eyes closed forever. With his father meeting death in an accident, poor Raju- now eleven years old, is left to face the world alone.
Sunil owns a small garage. Seeing Raju's destitute condition, he takes upon himself the responsibility of rearing him up. Both take to each other so greatly that people think them to be kith and kin. Both face the world with a repeshed outlook.
The owner of the house wherein Sunil's garage is situated-- Seth Tarachand is a man of culture and ideals. He is mightily pleased with Sunil's way of simple living and high thinking. Seth Tarachand wanted to see that Sunil's ideals were put in effect.
Seth Tarachand had only an issue-- Menaka. Chiranjiv was owner of a big garage. Menaka's mother desired that Menaka should marry Chiranjiv. But Menaka desired to marry the simple minded Sunil.
Both Menaka and Sunil began to meet each other often-- with the result that Raju had to spendn hours alone. This upset the innocent soul of Raju,
Chiranjiv realising that the only obstacle to winning Menaka was Sunil, decided to remove him. Guessing why and how Raju was upset, he decided to utilize him in the notorious plan to remove Sunil. Poor Raju fell an easy prey to his guiles.
The trophy in the motor-race was most coveted priviledge of all auto-car owners. Both Chiranjiv & Sunil were the entrants. Chiranjiv persuaded Raju to play with the life of his life-saviour pal Sunil.
But Sunil's friend Anwar Mirza tried to save Sunil's life at the cost of his.....Did he succeed?
Did Chiranjiv get what he desired?
Did Sunil win the love of Menaka?
Was Raju's misunderstanding removed?
And what was the result of that motor-race which is presented for the first time in an Indian Film with all its fierce realism-- who won that motor race?
Let the silver screen show it in all its magnificient glamour.
(From the official press booklet)
बचपन
(कथासार)
राजु (डेज़ी ईरानी) की मां उसके पैदा होते ही मर गई थी और बाप भी एक मोटर एक्सिडेंट से मर जाता है. ग्यारह साल का बच्चा राजु इस बड़ी दुनिया में अकेला रह जाता है.
सुनिल (सलिम) एक छोटा सा गेराज का मालिक है जो राजु की परवरिश और देखभाल का जिम्मा अपने ऊपर लेता है. यहॉ तक के दोनों के दरम्यान इस कदर प्यार बढ़ जाता है के एक दूसरे का एक हिस्सा बन जाता है. राजु को खोया हुआ प्यार मिल जाता है और सुनिल को मायूस और तन्हा ज़िंदगी का एक नया मकसद और एक नई उमंग मिल जाती है. दोनों मिलकर दो भाईयो की तरह हर बात का हंसी खुशी से सामना करते हैं.
जिस मकान में सुनिल का गेराज है उस मकान का मालिक शेठ ताराचंद (डेविड) एक उंचे ख्यालात के अमीर आदमी हैं. वो सुनिल की सादगी, समझदारी और बुलंद ख्यालात से बहुत खुश होता है क्योंकि सुनिल जैसा कहता है वैसा कर दिखाता है. सेठ ताराचंद कहता है कि वो सुनिल की मायूस ज़िंदगी को नई उम्मीदों से भर दे.
मेनका (मेनका ईरानी) सेठ ताराचंद की एकलौती बेटी है जो चिरंजीव (जीवन) से नफरत करती है और सुनिल को पसंद करती है. इनकी अलाहिदा मुलाकातें राजु के मासूम दिल को तोड़ देती है. वो महसूस करने लगता है कि उसका भैय्या सुनिल जिसकी हर खुशी, गम और हर बात में ये शरीक रहता है वो अब उसे भूलकर मेनका का हो गया है. वो मुस्कराते है, प्यार के तराने गाते हैं और इधर राजु अकेला अपनी बेकसी पर मजबूर, बेअख्तयार रो पड़ता है और अपने पिता की तस्वीर के सामने फरियाद करता है कि अब वो कहां जाये.
चिरंजीव एक बड़ी गेराज का मालिक और मोटर रेस की चैंपियन था जो, मेनका की मां (मनोरमा) की पसंदगी का लड़का था. मेनका की मोहब्बत न पानेपर गुस्से से पागल होकर वो राजु की नादानी का फायदा उठाता है. राजु अपने भाई की ज़िंदगी से खेलने को तैयार हो जाता है. जिसके वो हर खुशी कुर्बान करने को तैयार रहता था.
सुनिल का दोस्त अन्वर (अन्वर) उसकी जान बचाने के लिये अपनी जान की बाजी लगाकर उसे बचाने की कोशिश करता है.
क्या चिंरजीव अपने इरादों में कामयाब हुआ. क्या अन्वर अपने दोस्त की जान बचा सका. क्या सुनिल को मेनका की मोहब्बत मिली. क्या राजु ने अपने भैया की ज़िंदगी को बचा लिया. और उस मोटर रेस जो कि पहली बार हिन्दुस्तानी फिल्म में पेश की जा रही है जिसका एक द्श्य मौत और ज़िंदगी का भयानक खेल है वो मोटर रेस का क्या हुआ.
ये सब रुपेरी पर्दे पर देखो.