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Continueपातालपति अहिरावण ने अपनी कुल देवी कामाक्षा को प्रसन्न कर त्रिभुवन का वैभव तथा अतुलनीय बल प्राप्त किया। केवल एक ही कमी थी तो एक अनिंद्य सुन्दरी की जिसे वह पाताल की महारानी बना सके। इसके लिये वह नाग-राज की कन्या चन्द्रसेना को उठाकर पाताल में ले आया पर चन्द्रसेना बचपन से ही श्री राम की पुजारन थी। वह अपना मन प्रभु राम को अर्पित कर चुकी थी और अहिरावण को पति स्वीकार करना उसके लिये असंभव था।
अहिरावण ने नाग-राज पर अत्याचार करने आरम्भ किये। अपने माता-पिता को यातनाओं से बचाने के लिये चन्द्रसेना को अहिरावण से ब्याह करना पड़ा पर वह हमेशा उससे दूर ही रही। तरह तरह की यातनायें सहन करने के बाद भी चन्द्रसेना ने अहिरावण को अपने शरीर को भी स्पर्श नहीं करने दिया। वह इस बात की प्रतीक्षा करती रही कि प्र्रभु राम आयेंगे और उसे अहिरावण से छुटकारा दिलवायेंगे।
उधर सीता-हरण के पश्चात् श्री राम का हनुमान जीे से मिलन हुआ। सुग्रीव की सहायता से प्रभु राम ने लंका पर चढ़ाई की। रावण का भाई कुंभकर्ण तथा वीर बेटा मेघनाद युद्ध में मारे गये। उस समय रावण ने अपने पुत्र पातालपति अहिरावण को बुलाया। पिता की सहायता करने तथा अपना बदला लेने के लिये अहिरावण राम और लक्ष्मण को युद्ध-भूमि से उठाकर पाताल ले गया जहां उसने उन दोनों को कामाक्षा देवी के सामने बलि देने का निश्चय किया।
हनुमान जी प्रभु राम की खेाज में पाताल आये। वहां माया से वे देवी के मंदिर में प्रवेश करके देवी की मूर्ति के पीछे छिप गए। वहीं उन्होंने राम और लक्ष्मण को बंधन मुक्त किया ओर अहिरावण को मार डाला। अहिरावण का भाई महिरावण मारा नहीं जा सकता था क्योंकि उसके खून की बूंदों से कई महिरावण पैदा हो जाते थे।
हनुमान जी ने महिरावण की मृत्यु के भेद का कैसा पता लगाया? चन्द्रसेना को प्रभु राम मिले या नहीं? उसकी सच्ची भक्ति का फल क्या निकला? इन प्रश्नों के उत्तर आप पर्दे पर "वीर बजरंग" में देखिये।
(From the official press booklet)