औरत समझौता करना जानती है, वो जब अपनी गलती महसूस करती है तो झुक जाती है मगर मर्द गलती करके भी झुकना नहीं चाहता, वो समझौता करनेके बजाय, खींजता है, भडकता है और बिगड उठता है, शान्ती के जीवन में भी यही हुआ अब उसने बुराई के रास्ते पर चलते हुये अपने पति को रोका तो वो बिगड उठा और अपनी सतीसाध्वी पत्नि को छोडकर चला गया, साथ में अपने बड़े लडके को भी ले गया, शान्ती ने किस्मत से समझौता करके इस धक्के को बर्दाश्त किया, अपने होनेवाले बच्चे की भविष्य को सुधारने की आशा पर उसने दुनिया की सारी मुसीबतों से मुकाबिला करने की ठान ली, कर्जे वालों की बदौत उसे घर छोड देना पडा, जंगल, गांव, शहर, बस्तियों में भटकते हुये भगवान के द्वार पर पहुंच, उसने बच्चे को जन्म दिया शान्ती के जीवन का तूफान बच्चे की पहली चीख के साथ शान्त हो गया, उसने बच्चे को पाला इस संकल्प को लेकर कि वो उसे उसके पिता के नक्शे कदम पर नहीं चलने देगी, जिसपर कि उसका बडा लडका बंबई में अपने बाप के साथ चल रहा था।
समय बीतता गया, बच्चे जवान हुये और जवान बुढ्ढे, अेक तरफ बुराईया फल फूल रही थी दूसरी तरफ अच्छाईयां, अेक तरफ चोरी, खून, जुआ, हत्या सब मिलकर साँस ले रहे थे और दूसरी तरफ इंसानियत, शराफत शिक्षा और मां की ममता पनप रही थी, और अेकदिन शान्ती को पता लगा कि वो विध्वा हो गई उसके पति को फांसी हो गई, उसने सीना थामकर ये सबकुछ सुना, वो शेखर को लेकर बंबई आई और उसे कालेज के भर्ती करा दिया।
राज और शेखर दोनों ही दुनिया के स्टेज पर अपना अपना पार्ट अदा करने लगे, शेखर की पीठ पर उसकी मां का हाथा था और राज की आत्मा में उसके पिता की जहरीली आत्म बोल रही थी, वाकोत और वजुहात ने अेक दिन मां को अपने बिछडे हुये बेटे से मिला दिया, मगर इससे पहले कि मां की ममता मचल कर अपने बेटे की गले से लगाये उसे पता चला कि उसका बेटा राज गलेतक बुराईयों में डूबा हुआ है, मां कि ममता ने मुंह फेर लिया, राज चला गया और इसके बाद दोनों भाईयों की आंख मिचैनी शुरू हो गई, और अेक दिन आया कि दोनों भाई अदालत में अेक दूसरे के सामने खडे थे, राज खून के जुर्म में और शेखर ? शेखर वकील बनकर उसे सजा दिलाने के लिये, और जब शेखर को ये पता चला कि हत्यारा उसका सगाभाई है तो उसके पैर डगमगा उठे, परन्तु मां ने ? इसके बाद क्या हुआ ? ये रजतपट पर।
(From the official press booklet)