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महामाई के जागरण में सम्मलित होने वाले भक्तों का ये विश्वास है कि तारा रानी की ये अमर कथा सुने बिना महामाई का जागरण सम्पूर्ण नहीं माना जाता।
ये कहानी प्राचीन समय की दो बहनें नन्दा और सुनन्दा की है। सुनन्दा की चंचलता ने नन्दा को एकादशी के व्रत में मांस खिलाना चाहा, नन्दा ने क्रोध में आकर अगले जन्म में छिपकली बनने का श्राप दे दिया। अगले जन्म में नन्दा तारा बन कर महाराज के घर जन्म लेती है और सुनन्दा महाऋषी भोष के आश्रम में छिपकली की जूनी में आती है और सदा इस जूनी से मुक्ती पाने की सोचती है ऐसा समय आता है जब वो यज्ञ में सम्मलित होने वाले महापुरूषों की जाने अपनी आहुती दे कर बचा लेती है। यहाँ भी वो एक श्राप का शिकार हो जाती है और महाराजा स्पर्श के घर में जन्म लेने पर भी उसका पालन शुद्र के घर में होती है और उसका नाम रूस्कमन रखा जाता है। तारा रानी और स्कमन दोनों बड़ी होती है। तारा रानी का विवाह होकर हरिपुर के राजा हरिचन्द्र से कर दिया जाता है और रूकमन भी एक शुद्र से विवाहित होकर तारारानी के महलों में एक मेहतरानी के रूप में पहुँच जाती है। पहली ही भेंट में तारारानी पहचान जाती है कि रूकमन उसकी पिछले जन्म की बहन है। समय बीतता है और तारा रानी की गोद पुत्र से भर जाती है। रूकमन के संतान नहीं होती। रूकमन के संतान न होने पर तारा रानी उसे समझाती है कि माँ उस पर कृपा करेंगी। वो उसका जागरण कराना न भूले सो उस प्रकार रूकमन को भी पुत्र फल की प्राप्ती होती है, परन्तु रूकमन पुत्र की मोह माया में फंसकर माँ का जागरण कराना भूल जाती है। एक दिन उसका पुत्र बीमार हुआ रूकमन को याद आ जाता है कि वो महामाई का जागरण कराना भूल गई है तो रूकमन घर में जागरण रखाती है। जब कोई महन्त जागरण को तैयार ना हुआ, तो तारारानी ने रूकमन के घर जागरण करना स्वीकार किया, महाराजा हरिचन्द्र को पसन्द न आया कि महारानी तारा किसी तरह से महलों से निकल कर जागरण करने शुद्र बस्ती चली जाती है। राजा पीछे जाता है और तारारानी को .... मदिरा लेते देखकर क्रोधित हो जाता है और जा कर देखता है तो मांस की जगह प्रसाद फलहार और फूलों में दबल जाता है। मदिरा की जगह दुध देखकर महामाई के पंथ के बारे में जानना चाहता है तो महारानी महाराजा को अपने सबसे प्रिय घोड़े अश्वशतरक और इकलौते पुत्र की बलि देने को कहती है।
इसके बाद क्या हुआ आगे पर्दे पर देखिए।
(From the official press booklet)