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Swarg Narak (1978)

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शोभा और गीता कालेज की विद्यार्थिनियाँ हैं। दोनों में गहरी दोस्ती है। मगर दोनों की प्रकृति बिलकुल विपरित है।
शोभा की मान्यता है कि पत्नी को अपने पति पर नियंत्रण रखना चाहिए। पर गीता को विश्वास है कि पत्नी को अपने प्रेम और आत्मीयता के बल पर पति के दिल को जीत लेना चाहिए।
दोनों के विवाह अपने अपने माता-पिता की इच्छा से, संयोग से एक ही तिथि को निश्चित हो जाते हैं। इसलिए एक की शादी में दूसरी भाग नहीं ले पाती है।
गीता का विवाह एक अमीर युवक विनोद के साथ संपन्न हो जाता है। और शोभा का विवाह एक कालेज के प्रोफेसर मोहन कपूर के साथ।
गीता का पति एक शराबी और वेश्यागामी है। शोभा का पति एक आदर्श प्रेमी है और सदा अपनी पत्नी को खुश और प्रसन्न रखता है।
गीता की ज़िंदगी दुर्भर और नरक तुल्य बन जाती है; जबकि शोभा का जीवन सवर्ग तुल्य है।
फिर भी गीता शोभा को लिखती है कि वह अपने पति के साथ बहुत ही सुखी है।
एक दिन मोहन को अपने विद्यार्थियों को पर्यटन पर ले जाने की जिम्मेदारी से एक हफ़्ते के लिए अपने शहर से बाहर जाना पड़ता है। शोभा अपने घर में अकेली नहीं रह सकती थी, इसलिए मोहन उसे सलाह देता है कि वह अपनी दोस्त गीता के घर में एक हफ़्ता बिता दे।
शोभा गीता के घर चली जाती है और गीता के पति विनोद के वास्तविक रूप को जान लेती है। तब उत्तेजित हो गीता पर दबाव डालती है कि वह अपने पति को तलाक दे। मगर गीता इनकार कर देती है और समझाती है कि नारी को अपने घर को सुधारने में सहनशीलता से काम लेना चाहिए।
शोभा घर लौट आती है और अपने पति को लेने स्टेशन पहुँच जाती है। वहाँ शोभा अपने पति को एक कालेज लेक्चरर राधा के साथ पाती है। उसके मन में नारी सहज शंका पैदा हो जाती है। वह ईर्ष्या से भर उठती है, सोचने लगती है कि पुरुष के अंतर और बाह्यय रूप क्या हैं? और इसमें नारी का पात्र भी है? कालक्रम में अनेक ऐसी घटनाएँ घटती हैं जिनके कारण शोभा का संदेह अपने पति मोहन के प्रति बढ़ता ही जाता है। वह उसके साथ लड़ने-झगड़ने लगती है, जिससे धीरे-धीरे उसका घर नरक में बदल जाता है।
उधर गीता के पारिवारिक जीवन में भी परिवर्तन होने लगता है। विनोद की माँ का देहांत हो जाता है जिससे वह अपनी भूलों को सुधार लेता है, और उसमें मानसिक परिवर्तन हो जाता है। गीता और उसका पति विनोद अपने घर को स्वर्ग के रूप में बदल लेते हैं।
मोहन अपनी पत्नी की शंका से ऊब जाता है। शेाभा अपने पति के राधा के साथ अनुचित संबंधों को लेकर स्र्वत्र दुष्प्रचार करने लग जाती है।
त्रिपाठी जो एक अनेखा व्यक्तित्ववाला है मोहन तथा शोभा का मित्र है, शोभा की आँखें खोल देता है।
अंत में शोभा अपनी भूलों और गलतियों को समझ लेती है और अपनी करनी पर पछताते हुए अपने पति की खोज में चल देती है।
“स्वर्ग या नरक-हम खुद ही बनाते हैं!” यही इस कहानेी की केन्द्र बिन्दु है!!!

(From the official press booklet)

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