Subscribe to the annual subscription plan of 2999 INR to get unlimited access of archived magazines and articles, people and film profiles, exclusive memoirs and memorabilia.
Continueवह जहाज़ी था, समुन्दर की गहरइयों में कई बार डूबा, कई बार निकला, उस ने गरीबों की मदद की, इन्सानों को इन्सानियत का पैगाम दिया। जब वह सात समुन्दरों को पार कर चुका तो उसने नीले समुन्दर के जज़ीरे पर एक रियासत आबाद की, उस का नाम था रियसत सिन्दबाद। उस रियसत में आका और गुलाम में कोई फर्क न था। बादशाह था सिन्दबाद- वह आदिल था, मुन्सिफ मिजाज था, उसे दुनिया में किसी चीज से मुहब्बत थी तो कानून से और इस से भी ज्यादा अपनी स्वर्गवाशी मलिका की निशानी यूसफ से।
वह जो कहावत है ना? “पिता पर पूत...।” यूसफ भी अपने बाप की तरह हमेशा समुन्दर की गहराइयों में उतर जाता, उस के पेट से मोती निकालता, समुन्दर के भयानक जानवरों से भिड़ जाता, उसकी जवानी हर खतरे को लल्कारती और उस की तलवार मौत का मुकाबला करने के लिये भी हमेशा तैय्यार रहती, उसे अपनी जवानी पर घमंड था, अपनी शखशियत पर गुरूर था।
एक बार एक फरियादी ने यूसफ का दामन सिन्दबाद के कानून के कांटे में उलझा दिया, बेटे पर खून का मुकदमा था, सिन्दबाद मुनसिफ था, उस ने बेटे को मौत की सजा दी, लेकिन ठीक मौके पर यासमीन जो यूसफ की साथी थी सिन्दबाद के बेटे की ढाल बन गई, बादशाह ने दोनों को रियासत से निकल जाने का हुकम दे दिया। फैस्ला सुनाने के बाद बादशाह ने अपना ताज उतार कर रख दिया और बाप की हैसियत से बेटे को सीने से लगाया और कहा
“इस अलविदाई में मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकता, क्योंकि रियासत की कोई चीज मेरी नहीं है, सिर्फ जिन्दगी का तजुरबा मेरा अपना है, तुम अपने दामन में मेरे तीन फूल डाल लो- कभी गुरूर मत करना- औरत का एतबार मत करना- खुदा को कभी मत भूलना।”
लेकिन सास्मीन यूसफ की साथ थी, वह हमेशा उस पर अतबार करता था और वह औरत थी यूसफ ने तो जिन्दगी में हर औरत का एतबार किया- गुरूर उस की शखसियत का एक अंश था- और गुरूर से भरी जवानी हुस्न के सामने सर झुकाती है- खुदा के सामने नहीं।
बुढ़ापे के तजुरबे और जवानी की उमंग में एक जोरदार टक्कर हुई- लेकिन जीत किस की हुई? पर्दे पर देखिये!!!
(From the official press booklet)