indian cinema heritage foundation

Noor Mahal (1965)

  • GenreDrama
  • FormatB-W
  • LanguageHindi
  • Gauge35 mm
  • Censor RatingU
  • Censor Certificate NumberU-45927-MUM
  • Certificate Date1/11/1965
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                                                                                                         ईश्वर के यहां न्याय है, अन्याय नहीं,
                                                                                                          वहां देर हो सकती है, अंधेर नहीं।

यही कहावत लागू होती है-हमारे 'नूरमहल' के खलनायक वीरसिंह (तिवारी) के साथ। वह अपने बड़े भाई राजा जसवंत सिंह एवं गुरु की हत्या महज इस लिये कर देता है कि तख्त का मालिक खुद बन सके। यहां तक कि उस तख्त की एकमात्र हकदार भतीजी राजकुमारी को (जो उस समय सिर्फ एक साल मात्र की नादान बच्ची होती है) भी मौत के घाट उतार देना चाहता है। मगर मारनेवाले से बचानेवाले के हाथ लम्बे होते हैं - राजकुमारी की रक्षा दो अनजान हाथों से होती है - वही आगे जाकर...?

सेनापति वीर सिंह सोलह साल के बाद राजसत्ता का मालिक बन जाता है-अपने भतीजे राजकुमार मोहन सिंह (समरराय) को पागल करार देकर (जो सही माने में पागल नहीं रहता) खुद राज के सारे अख्तियारात अपने हाथ में ले लेता है। जब जब भी कोई वफादार सरदार उसके खिलाफ साजिश करने की कोशिश करता है, वीरसिंह उसे मौत के घाट उतार देता है। यहाँ तक कि वो अपने भतीजे की मंगेतर से जबरन शादी करने पर उतारू हो जाता है।

इस तरह दिन पर दिन वो एक न एक आसपड़ोस के राज्य में लूटपाट करके वहां के राजाओं के साथ जुल्म करता रहता है और एक दिन वह राजा विक्रमसिंह को (दलपत) बंदी बनाकर उसकी लड़की राजकुमारी राधा (ललिता देसाई) को जबरन पकड़कर ले जाना चाहता है, उस समय विक्रमसिंह का बेटा विजयसिंह (जगदीप) बीच में आकर अपने बाप एवं बहन को छुड़ाना चाहता है-कि वीरसिंह के सिपाही उस निहत्थे पर टूट पड़ते हैं- बादुरी के साथ लड़ते-लड़ते हमारा नायक राजकुमार विजय सिंह (जगदीप) बेहोश होकर गिर पड़ता है। वीरसिंह के सिपाही जो उसे जिंदा नहीं पकड़ सके थे-बेहोसी की हालत में उठाकर ले जाना चाहते हैं कि हन्टरवाली (चित्रा) अकार सिपाहियों पर टूट पड़ती है- आखिर में हन्टरवाली, अपने साथी कुत्ता, टाईगर एंव घोड़ा आशीक की सहायता से किसी तरह से नायक (जगदीप) को वहां से सही सलामत ले जाने में कामयाब हो जाती है।

मगर जब विजयसिंह काला पहाड़ के पीछेवाली गुफा में बेहोश आता है तो उसे सामने दिखाई देती है-हन्टरवाली की जगह एक मालिन-गूंगी मगर खूबसूरत। विजयसिंह उस मालिन की खूबसूरती से पागल होकर उसके पीछे-पीछे जाता है, और मालिन (चित्रा) नूरमहल के एक भाग- Grave yard के पास आकर गायब हो जाती है, और हमारा नायक विजयसिंह उसे ढूंढते 2 जब लौटता है, तो उसके कंधे पर हन्टरवाली का पंजा होता है। यही है उस बेचारे की उलझन का रहस्य-जो इस बार उसे नासमझ कर देता है।

हर रात के ठीक दो बजे उसे एक अनजान चीख-पुकार खींचकर ले जाती है। नूरमहल के खंडहरों की तरफ और यहां वह भटक जाता है। एक रूह के पीछे-पीछे उसे सुनाई देती है।

एक दर्दभरी आवाज, एक रूह की संगीतमय दर्दनाम गीतों भरी दास्तान जो सारे नूरमहल में गूंजती रहती है।

                                   "मेरे महबूब न जा आज की रात न जा
                                      होनेवाला है सहर, थोड़ी देर और ठहर।"

नूरमहल की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है, बल्कि कुछ सवाल उठते हैं, हर देखनेवाले के दिमाग में-

1.            क्या राजकुमार विजयसिंह नूरमहल की इस रूह का पता लगाने में कामयाब हो सका?

2.            क्या गूंगी मालिन सचमुच गूंगी है?

3.            क्या हन्टरवाली, मालिन एवं रूह एक ही औरत के तीन रूप है?

4.            क्या नूरमहल का बूढ़ा माली (खान) वीरसिंह के राजघराने से कोई तालुक रखता है?

5.            क्या वीरसिंह अपने भतीजे मोहनसिंह की मंगेतर राजकुमारी राधा को अपना बना सका? उसकी शादी हो सकी?

6.            क्या झूलेवाली बच्ची राजकुमारी जिसका खून वीरसिंह करना चहता था, आज भी जिन्दा है? क्या यही बच्ची आगे जाकर....?

7.            क्या वो रूह सचमुच किसी अन्य की रूह मात्र है, या उसी मालिन की शरारत भरी दूसरी शक्ल?

इन सब सवालों का जवाब पाने के लिये आपको अढाई घंटे तक सनसनी पूर्ण दिल थामनेवाली रतन प्रोडक्शन की नई कृति देखनी ही होगी।

(From the official press booklet)