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दौलत और जवानी इंसान को हैवान बना देती है। वासना के पुजारी नागपाल की बर्बरता का शिकार बन जाने वाले बड़े भाई वृन्दावन की दर्दभरी कथा ही "मतवाला" की भूमिका है। नागपाल के हत्यारे हाथों से बचने के लिये, वृन्दावन का पुराना मित्र गंगामल, उसके लाडले के लिये भगवान बन बया। परन्तु विपत्तियाँ परछाई की तरह साथ चलती हैं। गंगामल को इस उपकार के लिये अपनी लड़की से भी हाथ धोना पड़ा और बच्चों की खातिर गंगामल और लक्ष्मी को बिछुड़ कर दर दर की ठोकरें खानी पड़ीं। नागपाल के साथियों ने उन दोनों मासूम बच्चों को कत्ल करने के लिये जंगल की राह ली। मगर मारने वाले से बचाने वाला हमेशा बड़ा होता है। लड़का जंगली जानवरों के बीच पलकर पुरुषोत्तम बन गया। लड़की को परमाराम के एक किसान ने बचा कर पूर्णिमा बना दिया।
एक दिन अचानक ही बाप और बेटे में मुठभेड़ हो गई। पुरूषोत्तम की बहादुरी से प्रभावित होकर वृन्दावन ने अपनी उपाधि प्रदान की - 'नीले पहाड़ का लुटेरा' और साथ ही उसकी सहायता के लिये एक कुत्ता और घोड़ा भी दिया।
युवतियों की सुन्दरता अक्सर उनकी मुसीबतों का कारण बन जाती है। एक दिन जंगल में अकेली पाकर नागपाल के साथियों ने पूर्णिमा तथा उसकी सहेलियों को अपनी वासना का शिकार बनाना चाहा, कि अचानक ही द्रौपदी की लाज रखने वाले कृष्ण के रूप में पुरूषोत्तम आ निकला। पूर्णिमा और पुरूषोत्तम प्रीत की डोर में बँध गये।
इधर 'नीले पहाड़ के लुटेरा' के नाम पर नागपाल का अत्याचार दूज के चाँद से पूनम का चादँ बनता जा रहा था। पुलिस लुटेरे को पकड़ने के लिये अपना जाल बिछा रही थी। नागपाल ने पूर्णिमा और लक्ष्मी को गुप्त महल में क़ैद कर लिया। तो क्या पुरूषोत्तम पुलिस के जाल से बचकर नागपाल के गुप्त महल तक पहुँच सका? क्या पूर्णिमा अपनी इज्जत बचा सकी? क्या बिछुड़े बाप-बेटे, माँ-बेटे, माँ-बेटी का मिलन हो सका?
इसके लिये आपको पूरा चित्र देखना जरूरी है।
(From the official press booklets)