This section is for paid subscribers only. Our subscription is only $3700/- for one full year.
You get unlimited access to all paid section and features on the website with this subscription.
यह सत्य कथा पर आधारित एक धार्मिक फिल्म है। राजस्थान के अलवर जिले की तिजारा तहसील के गाँव मिलकपुर के पास शैदपुर गाँ में एक नंदू नाम का ग़रीब ग्वाला रहता था, जो मिलकपुर की पहाड़ियों के घने जंगल में अपनी गायों को चराया करता था। उसकी भगवान श्री कृष्ण के प्रति अटूट श्रद्धा भक्ति थी। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण रुकमणी के कहने पर, नंदू ग्वाले की गायों में अपनी गाय भेज देते है।
एक दिन नंदू ग्वाला अपनी माँ से कहता है, माँ, ना जाने हर रोज एक गाय मेरी गायों में आती है शाम होते ही जहां से आती है, वहीं चली जाती है। पता नहीं किसकी गाय है, एक दिन उसका पीछा करूंगा।
माँ कहती है जाने दे बेटा, गऊ माता है, तू कुछ मत करना। माँ की बात ना मानकर एक दिन नंदू उस गाय के पीछे चला ही जाता है, और देखता है कि एक लटाधारी महात्मा गुफा में तपस्या कर रहा है। नंदू को आता देख महात्मा कहते हैं, आओ नंदू गाय की चरवाही लेने आये हो ना। महात्मा के मुख से अपना नाम सुनकर नंदू को आश्चर्य होता है। नंदू हाथ जोड़कर कहता है, बाबा आप कौन हैं। महात्मा कहते हैं, मैं भगवान श्री कृष्ण का अवतार बाबा मोहनराम हूँ और अपना विराट रूप दिखाते हैं, और नंदू को भबूत देकर कहते हैं कि इस भबूत को अपने भन्डार गृह में रख देना, तुम्हारे दुःख के दिन टल जाएंगे। नंदू भबूत लेकर धर में माँ को दे देता है, नंदू के घर खुशहाली आ जाती है। लेकिन यह चर्चा पूरे गाँव में फैल जाती है, एक दिन गाँव की औरत मिलकर भोली भाली नंदू की माँ के पास आ जाती है, और उसको चिकनी चुपड़ी बातें सुनाकर खुशहाली का राज बताने को कहती है, औरतों की बातों में आकर जैसे ही भन्डार गृह को खोलकर दिखाती है, भन्डार गृह में मिट्टी के अलावा कुछ नहीं मिलता, औरतें हँसती हुई चली जाती हैं। जैसे ही नन्दू घर आता है, माँ नंदू को सारी कहानी बताती है। नंदू परेशान होकर गुस्से में आ जाता है, और माँ के समझाने पर फिर बाबाजी के पास भबूत मांगने चला जाता है। लेकिन बाबाजी नंदू को भबूत न देकर उसको पांच रतन दिखाकर वाक सिद्धी का वरबान दे डालते हैं। बेचारा भोला भाला नंदू घर आ जाता है। माँ कहती है, बेटा कुछ दिया बाबा ने। नंदू ने कहा, कुछ नहीं दिया, माँ ने कहा, अब क्या होगा। नंदू ने कहा, मुझे क्या पता, गाँव की औरतों को भन्डार गृह दिखाने से अच्छा होता तू मर जाती। नंदू के मुख से मरने के शब्द निकलते ही मां मर जाती है। नंदू बहुत रोता है और घर द्वार छोड़कर बाबा मोहनराम की सेवा में लग जाता है, और गाँव में सभी दीन दुखियों का दुःख दूर करने लगता है।
फिर बाबा मोहनराम शेखू नाम के ग्वाले को दर्शन देते हैं और उसे गाने का वरदान देते हैं, शेखू बाबा मोहनराम की महिमा गाने लग जाता है। शेखू के बाद बाबा मोहनराम गांव के सरपंच भावसिंह को सपने में दर्शन देकर मन्दिर बनवाने को कहते हैं। सरपंच भावसिंह, नथुवाराज, नंदू व शेखू गांव वालों के साथ मिलकर मन्दिर बनवाने की सोचते हैं, मन्दिर बनवाने की बात गांव के कट्टर जमीनदार जोरावर सिंह को पता चलती है, तो वह कहता है...कोई बाबा मोहनराम ना हैं, सब झूठ हैं, जादू है, नंदू, शेखू व भावसिंह कौ रचायौ हुऔ ढोंग है यू और फिर या गौम को मोहनराम तौ मै हू गौम मैं मन्दर बनेगौ तो म्हारौ बनेगौ गौम मैं मूरत लगैगी तो म्हारी लगैगी।
गाँव में अपने साथियों के साथ मिलकर आग लगवा देता है, और गाँव की बहन, बेटी कौर बहुओं को सताता है।
गाँव के एक परिवार की बहू सरस्वती जिसकी शादी की आठ साल हो चुकी है वह भगवान श्रीकृष्ण की पुजारिन है, गांव की औरतें सरस्वती को बांझ-बांझ कहकर चिढ़ाती हैं। सरस्वती अपने परिवार को लेकर नंदू के पास आती है और नंदू के कहने पर बाबाजी की पूजा व व्रत रखती है।
एक दिन जोरावर की नजर पूजा करके आती सरस्वती पर पड़ जाती है। जोरावर अपने आदमियों को भेजकर सरस्वती को उठाकर लाने को कहता है। जोरावर के आदमी, पूजा करके आ रही सरस्वती को पकड़ लेते हैं और सरस्वती की इज्जत लूटना चाहते हैं। सरस्वती, बाबा मोहनराम के नाम की रट लगाती है-बाबा मोहनराम मेरी रक्षा करो। बाबा मोहनराम प्रकट हो जाते हैं, जोरावर के सारे गुण्डे भाग जाते हैं। बाबा मोहनराम खुश होकर सरस्वती को पुत्र प्राप्ति का वरदान देकर अंतरध्यान हो जाते हैं।
नंदू, शेखू व भावसिंह का क्या हुआ...?
क्या जोरावर सिंह ने गांव में मन्दिर बनाने दिया या नहीं...?
क्या सरस्वती बाबा मोहनराम के आशीर्वाद से माँ बनी...?
क्या बाबा मोहनराम जोरावर सिंह को उसके कर्मों की सजा देते हैं...?
यह सब जानने के लिए देखिये हिन्दी फीचर फिल्म "महिमा बाबा मोहनराम की"।
[From the official press booklet]