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Madan Manjari (1961)

  • LanguageHindi
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महेन्द्र गढ़ की राजकुमारी मंजरी अपनी सहेलियों के साथ बिहार को आई थी। वहाँ उन्हें एक हिरन अठखेलियां करता हुआ दिखाई पड़ा। राजकुमारी मंजरी का दिल उसका शिकार करने को मचल पड़ा। मंजरी ने अपने रथ के घोड़ों को हिरन का पीछा करने के लिये चाबुक का इशारा दिया। घोड़े सरपट चाल से राजकुमारी के रथ को लेकर हवासे बातें करने लगे। हिरन अपनी पूरी रफ्तार से चैकड़ी भरकर पहाड़ी रास्ते की तरफ बढ़ा - राजकुमारी मंजरी की सहेलियों का रथ पीछे रह गया - पहाड़ी रास्ते की ऊँचाई पर जाकर हिरन आँखों से ओझल हो गया और राजकुमारी मंजरी के रथ का पहिया टूट गया। घोड़े रास तुड़ा कर भागे - राजकुमारी रथ से गिर कर लुड़कती हुई नीचे गिरी - वो बचावो 2 चिल्लाने लगी। राजकुमारी मंजरी को बचावो 2 चीख़ मान गढ़ के राजकुमार मदन के कानों में पड़ी जो हाथी पर शिकार करने आये थे। उन्होंने आकर राजकुमारी को बचाया और उसे होश में लाये दोनों के नैन मिले। राजकुमारी मंजरी अपने प्राण बचानेवाले को आत्म समर्पण कर दिया। इधर राजकुमार मदन भी कामदेव के हमले से अपने आपको न बचा सके। उनके दिल से भी ठंडी साँस निकल गई, इतने में मंजरी की खास सहेली जोगन और दूसरी दासियाँ मंजरी को ढूँढते हुवे आ पहुँची और राजकुमार मदन का बाल सखा बैरागी भी, और प्रेम के नये राहियों की बातें ख़त्म हो गई। मंजरी अपना पता राजकुमार को बता चुकी थी मगर राजकुमार मदन का पता न पूछ सकी थी और इससे पहले ही उसे राजकुमार मदन से जुदा होना पड़ा। प्रेम की पगडंडी के नये मुसाफिर अपने अपने सीनों में पड़प और धड़कन लिये अपनी 2 राजधानी को रवाना हुवे। इन नये मुसाफिरों का क्या खबर थी के इन दोनों के पिताओं की खानदानी दुश्मनी चली आ रही है।

इधर तो यह दोनों प्रेम के रसरंग में डूबे हुवे थे और उधर इन दोनों के पिताओं की सेना आपस में तलवारें टकरा कर अपनी अपनी प्रजा की बहु बेटियों का सुहाग सिंदूर उनके पतियों के खून से धोकर बैधव्य की काली बदली की चादरें उनके सिरों पर डाल रही थीं। इस लड़ाई में भी मँजरी के पिता महाराज महेन्द्र सिंह की हार हुई। वो पहले भी महाराज सजन सिंह से सात लड़ाइयाँ हार चुके थे और महाराज सजन सिंह ने क्षमा और दया को महत्व देते हुवे हर बार महेन्दे सिंह को मुआफ़ किया था। मगर इस बार सजन सिंह ने सुलह की शर्त में महाराज महेन्द्र सिंह से खून का रिश्ता क़ायम करने का प्रस्ताव रखा ताके हमेशा के लिये आपसी दुश्मनी ख़त्म हो जाये और वो खून का रिश्ता था। या तो राजकुमारी मंजरी की बूढ़े सजन सिंह से शादी या महेन्द्र गढ़ का सर्वनाश। इस बारे में महेन्द्र सिंह ने अपनी पुत्री की इच्छा पूछने की अनुमती मांगी। सजन सिंह ने दो दिन का समय दिया और अपनी सेना के साथ महेन्द्र गढ़ की सीमा में पड़े रहे - इधर - जब महेन्द्र सिंह ने अपनी पुत्री के सामने सजन सिंह का प्रस्ताव रखा तो मँजरी ने चिता पर लिटाये जाने वाले मुर्दे के गले की माला बनने से साफ इन्कार कर दिया। महेन्द्र सिंह पर विपता का पहाड़ टूट पड़ा परन्तु चालाक मंत्री ने महेन्द्र सिंह के सिर का बोझ हलका कर दिया। मंत्री ने अपने राज्य की नर्तकी रूपकला को सजन सिंह की रानी बनने का लालच दिखाकर उसे शादी के लिये तय्यार कर लिया क्योंकि सजन सिंह ने आज तक राजकुमारी मँजरी को देखा नहीं था और यह कारण हुवा के रूपकला नर्तकी मँजरी बनाकर महाराज सजन सिंह के गले मंढ़ दी गई और महेन्द्र गढ़ सर्वनाश की चपेट से बच गया। रूपकला रानी बनकर मनगढ़ आई। राजकुमार मदन ने अपनी नई माँ को प्रणाम किया। महाराज सजन सिंह ने आशीर्वाद देने के लिये नई रानी से कहा। रूपकला का आशीर्वाद के लिये उठा हुवा हाथ रूक गया। वो मदन के रूप के बाण की चोट न सहार सकी। उसका जवान दिल, जवानी और रूप से गले मिलने के लिये तड़प उठा। उसने राजकुमार मदन को धोखे से अपने महल में बुलाकर उन पर अपनी गंदी ईच्छा प्रकट की। शीलवान राजकुमार मदन ने रूपकला की गंदी इच्छा का घृणा और फटकार से जवाब दिया। रूपकला घृणा और फटकार की चोट से नागन की तरह फुँकार उठी। उसने शोर मचाकर महाराज सजन सिंह को जगाया और राजकुमार मदन पर बलात्कार का इलज़ाम लगाया। सजन सिंह गुस्से से काँपने लगे। बुढ़ापे की हबिस ने पुत्र के प्यार को सीने से निकाल कर फेंक दिया और राजकुमार मदन हमेशा के लिये महाराज की आज्ञा से राजधानी से निर्वासित कर दिया गया।

यह खबर महेन्द्र गढ़ के मंत्री को मिली। उसने अपने महाराज को यह खुश ख़बरी सुनाई। महाराज महेन्द्र सिंह ने कहा मंत्रीजी ख़बर तो अच्छी है मगर कहीं रूपकला नर्तकी यह भेद सजन सिंह पर खुल गया तो बूढ़ा शेर हमारी हड्डियाँ चबाये बिना न रहेगा। इसलिये इस आनेवाली आफ़त से बचाने की तय्यारी हमें अभी से करनी चाहिये। मंत्री ने कहा महाराज आप घबरायें नहीं, मैंने बंगाल के महान जादुगर भीमनाग को अपनी राजकुमारी मंजरी से शादी करने का निमंत्रण भेज दिया, वो यहां आनेवाला है। आप उसके स्वागत की तय्यारी करें, मुझे पक्का विश्वास है के वो मेरी बात नहीं टालेगा और जब जादुगर से राजकुमारी का विवाह हो जायेगा तो सजन सिंह तो क्या संसार की बड़ी से बड़ी ताक़त भी हमारी रियासत की तरफ़ मुंह न उठायेगी। महेन्द्र सिंह के चहरे पर मुस्कराहट नाचने लगी।

इससे आगे महाराज सजन सिंह पर नर्तकी का भेद खुला या नहीं - राजकुमारी मंजरी का विवाह जादुगर से हुवा या नहीं - राजकुमार मदन और राजकुमारी मंजरी आपस में मिले या नहीं, यह सब रूपेरी परदे पर देखिये।

(From the official press booklets)