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धन-दौलत, सांसारिक वैभव आदि सबकुछ नाशवान है- आज है और कल नहीं. किन्तु एक चीज़ ऐसी है जिसे दुनिया की कोई ताक़त नहीं छीन सकती- वह क्या है? खान्दानी सन्स्कार-। गुलाब कांटो में रहकर भी खिलता है- कमल कीचड़ में पैदा होकर भी मलीन नहीं होता- क्यों? जाति- संस्कातर !
इसी तरह के उच्च संस्कार थे उसके. वह ब्राह्मण कन्या थी- किन्तु जन्म होते ही एक वेश्या के हाथ में पड़ गई ! वेश्या ने ब्राह्मण कन्या का पालन पोषन किया और फिर उसकी जवानी बेचने का इरादा किया. किन्तु ब्राह्मण कन्या यह नहीं जानती थी कि वह ब्राह्मण कन्या है, फिर भी उसके उच्च संस्कारों ने उसकी रक्षा की- हज़ारों मुसीबतें आने पर भी वह गंगा की तरह पवित्र रही।
मेलट्रेन की दुर्घटना से कहो या दुर्भाग्य से, ब्राह्मण कन्या, जब कि वह छे महीने की ही थी, गंगा वेश्या के हाथ पड़ गई - और तब ही से उसे मां समझ कर उसके घर में रहने लगी- बीस साल ऐसे गुज़र गये ब्राह्मण कन्या नयना ज़वान हो गई- उसकी उमर की लड़कियां अपने रुप की दुकाने लगाकर बैठने लगीं- किंतु नयना को इस पेशे से सख्त तफ़रत थी- वह कालेज में पढ़ती थी- वहीं पर नयना और मोहन का प्रेम होता है- मोहन नयना से शादी करना चाहता है. मगर उसे यह मालूम नहीं था कि वह वेश्या-पुत्री है. नयना मोहन से प्रेम तो करती थी लेकिन अपने आपको वेश्या-पुत्री समझती थी और शादी करने से इन्कार करती थी।
गंगा वेश्या नयना पर तरह तरह के जुल्म ढा रही थी. वह उसे दूकान पर बिठाना चाहती थी. नयना नहीं मानती थी. अचानक मोहन वहां आया. उसे मालूम हो गया कि नयना वेश्या पुत्री है- किन्तु शुद्ध प्रेम ने इन बन्धनों पर विजय पाई. नयना-मोहन दोनों ने अपने अपने घर छोड़ कर अपनी अलग दुनिया बसाई।
सात साल के बाद- मोहन बैरिस्टर है- अचानक मोहन के मातापिता वहां आ पहुंचे. मोहन की मां ने नयना को कहा "बहू तुमने चुपचाप शादी करली, हमसे कहा भी नहीं.- कहतीं तो हम भी शादी का आनन्द लेते- तुम कोई हलके कुटम्बकी या वेश्या पुत्री तो थी नहीं जो मैं अपने मोहन से तुम्हारी शादी न करती?"
नयना का मुँह सुख गया. वह प्रकाश को गोद में लेकर बाग में चली गई. मगर वहां सामने विक्राल डायन की तरह आंखें निकालती हुई गंगा वेश्या खड़ी थी। उसने नयना से कहा, मेरे साथ चल वरना तेरे सास ससुर से कहती हूं कि तू वेश्या-पुत्री है. नयना ने अपने पुत्र प्रकाश के भविष्य को अंधकार में डूबते देखा. वह गर्भवती थी कमज़ोर थी फिर भी वह गंगा वेश्या के साथ, प्रकाश को घर में छोड़कर, चल पड़ी. मोहन आया-नयना की बहुत तलाश की मगर वह न मिली।
नयना ने एक सुन्दर कन्या को जन्म दीया. बच्ची को गंगा के पंजे से छुड़ाने के लिये एक रात को नयना बच्ची के साथ बायब हो गई. गंगा सर कूट कर रह गई।
नयना ने अपनी बच्ची को एक जगह छोड़ दिया- एक सेठ सेठानी जिनको बच्चा नहीं था- उन्होंने बालिका को उठा लिया. नयना उन्हीं के यहां आया बनकर बच्ची को पालने लगी।
पन्द्रह साल के बाद- नयना बूढ़ी हो गई- उसकी लड़की जवान हो गई. दूसरी ओर मोहन जज हो गया. नयना की लड़की और प्रकाश के बीच में प्रेम हो गया. एक दिन नयना ने देखा कि वह दोनों शादी करना चाहते हैं. भाई बहन में शादी ! नयना को बहोत दुःख हुआ. नयना ने लड़की से कहा कि तेरी सच्ची मां यह सेठानी नहीं है- लड़की अपनीं मां से मिलने नयना के साथ गई- नयना उसे दूर दूर लेजाने चाहती थी किन्तु भाग्य को यह मंजूर न था- पुलिस ने उसे गिरफ़तार कर लिया- एक जवान लड़की को भगा ले जाने के जुर्म में।
कोर्ट में केस चला, कठघरे में नयना खड़ी थी, जज की कुर्सी पर उसी का पति मोहन बैठा था. सरकारी वकील के तौर पर उसी का पुत्र प्रकाश बहस कर रहा था- आगे क्या हुआ? यह आप परदे पर देखिये।
[From the official press booklet]