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लक्ष्मी का प्रवेश महल में क्या हुआ, ज्योति जगमगा उठी। राजा कमलाकान्त और उसके बेटे शेखर के जीवन मुस्कुरा उठे। उसके गुणों पर बाप-बेटे इतने रीझ गये कि उन्होंने विश्वास कर लिया कि भगवान ने उन्हें सब कुछ दे दिया। लेकिन कुछ घटनाओं ने उनके विश्वास हिला दिये। शेखर ने लक्ष्मी को कलंकित मानकार घर से निकाल दिया। आँखोंसे देखी और कानों से सुनी बात को सच मानकर शेखर ने यह गलती की। बेचारे को यह क्या मालुम था कि इस झूठ को सच साबित करने के लिए इसके पीछा कितनी बड़ी साजिश थी।
इस साजिश के पीछे गोपालदास चैरसिया नामक एक खास दिमाग़ था, जो ठेकेदार के नाम से मशहूर था। उसके काम होते थे पति-पत्नी को अलग करना, खून करवाना, किसीको सीट से हटाना और उसकी जगह पर दूसरे को बिठाना। मीठी-मीठी बातों से लोगों को अपने चंगुल में फँसाकर उनका सर्वनाश करता था। बेचारा शेखर भी इसी की चालों का शिकार हो गया।
गर्भवती लक्ष्मी घरसे निकलकर दूर कहीं पुजारी की शरण में रहने लगी। वहाँ उसने जुडवें बच्चे एक लडकी और एक लडके को जन्म दिया। शान्ति और रामू जब दस-बारह साल के हुए तो उन्हें मालूम हुआ कि उनकी माँ के प्रति कितना अन्याय हुआ। वे इस अन्याय का बदला ले सके? अपने माँ-बाप को मिला सके? ठेकेदार को सबक सिखा सके? अपने दादा के जीवन में फिर शान्ति ला पाये?
देखिये ए वी एम की रंगीन फिल्म जीवन ज्योति में।
[From the official press booklet]