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Janam Janam Ke Fere (1957)

  • Release Date1957
  • GenreRomance
  • FormatB-W
  • LanguageHindi
  • Run Time126 min
  • Length3792393
  • Number of Reels15
  • Gauge35mm
  • Censor RatingU
  • Censor Certificate Number87036
  • Certificate Date06/05/1978 (Re-certification)
  • Shooting LocationBasant Studios, Chembur
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जिसका अन्तिम अंजाम ही मृत्यु है - ऐसे ही मृत्युलोक में मनुष्य जन्म लेता है और जीता है - किन्तु जीना और जीना जानना इन दोनों में बहुत ही अन्तर है: जो इस अन्तर को समझता है वह जनम और जनम के फेरे से मुक्त हो जाता है और जो नहीं समझ सकता वह भव की राज में भूल जाता है, भटकता है, ठोकरें खाता है और मिट जाता है। अतः उसने कहाँ भूल की यह समझने के लिये सर्जनहार उसे पुनः सृष्टि में भेजता है-

उसी का नाम है "जनम जनम के फेरे।"

ऐसे ही एक जनम जनम के फेरे से मुक्ति पाने के लिये महापात्र प्रभू से हर रोज प्रार्थना किया करते थे, पर उनकी पत्नी कमला को पुत्ररत्न बिना यह फेरा अधूरा लगता था अतः प्रभू ने कमला की गोद भरी - महापात्र ने बड़े हर्ष से पुत्र की जन्मकुण्डली दिखलाई। भविष्यवाणी ने एक नयी कहानी को जन्म दिया - जिसका एक पात्र रघू और दूसरा सती अन्नपूर्णा थे याने रघू के भाग्य में दो चीज़ें एक ही साथ आईं - आस्तिकता और नास्तिकता।

एक आस्तिक पिता के लिये नास्तिक पुत्र असह्य था इसलिये महापात्र रघू के चारों ओर भक्तिभावना का सरंजाम इकट्ठा कर दिया किन्तु रघू भगत बने ये कमला को पसंद न आया - और काम, क्रोध, मद, लोभ भी इसे वर्दास्त न कर सके: चारों तत्त्वों ने रघू के शरीर में प्रवेश किया, नई नई रंगत पैदा की, परिणाम ये हुआ कि रघू भयंकर से भयंकर नास्तिक बन गया: और उसकी नास्तिकता महापात्र के लिये एक जटिल प्रश्न बन गई जिसका जवाब देने के लिये अन्नपूर्णा महापात्र की पुत्रवधू बन कर आई।

अन्नपूर्णा की आस्तिकता रघू को एकनाम का रहस्य समझायेगी - ऐसा महापात्र ने समझा - किन्तु रघू ने अन्न्पूर्णा की आस्तिकता पर नास्तिकता का भयंकर प्रहार प्रारम्भ किया।

सती की श्रद्धा और भक्ती की कसौटी प्रारम्भ हुई - रघू की नास्तिकता घर और बाहर दोनों के लिये असह्य हो उठी। मन्दिर की पूजा रोक दी गई - वटवृक्ष की पूजा में भी रघू विघ्न बन गया: सारा गांव महापात्र के खिलाफ हो गया अतः महापात्र ने रघू को सुधारने के एवज में अपनी सारी मिल्कियत दे देने की घोषणा की। रघू को आस्तिक बनाने के लिये सुधारक आये पर सभी जहरीले सापों के दंसो से सुरधाम सिधारे - ब्रह्महत्या के आघात को महापात्र भी न सह सके - वे भी चल बसे - कमला ने भी अनुगमन किया पर अन्नपूर्णा की श्रद्धा न गई - उसने रघू को आस्तिक बनाया - पर विधि ने तब नई चाल चली - अन्नपूर्णा और रघू एक दूसरे से अलग हो गये - अतः अन्नपूर्णा के चाचा ने पुनर्विवाह करने के लिये अन्नपूर्णा को मज़बूर करना शुरू किया - सती के लिये जनम मरन का सवाल पैदा हुआ: पति वापस अवश्य आयेंगे इस श्रद्धा के सहारे उसने जीवन छोड़ दिया: पर उसके सामने एक दिन पति की लाश लाश लाई गई, अन्नपूर्णा ने उसे स्वीकार नहीं किया आखिर श्रद्धा जीत गई - स्वार्थ हार गया "रघू जीवित है" - पर इसका प्रमाण न मिला - अतः गंगाधर ने पुनर्विवाह की बाजी खेल ही डाली।

बारात द्वार पर आई - बारात के साथ रघू भी आया - गंगाधर की बाजी पलट गई अतः रघू को ज़हर दिया - आरोप अन्नपूर्णा पर लगाया - अन्नपूर्णा कैद कर ली गई, गंगाधर रघू के शब को जलाने की तैयारी में लगा - किन्तु विधि की  तैयारी कुछ दूसरी ही थी।

रघू से अन्नपूर्णा अलग हो गई पर सती से सतीत्व अलग नहीं हुआ सतीत्व ने प्र्रभू से पुकार की - पुकार का जवाब आया -

जोग करो या राख रमावो, जप तप सब हैं झूठेः
करम को अपना धरम जो समझे, उसी के बन्धन छूटे,

परनाः- सांझ सवेरे सब को घेरे, इससे न कोई बचे रे ये है जनम जनम के फ़ेरे।

(From the official press booklet)

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