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वषों पहले राजस्थान स्थित युरु जिले के गाँव “गांगु” के मुखिया थे - श्री गंगो सिंह जी जिन्हें ईश्वर ने दी थी सम्पन्न किसानी, ठाट वाटी, रहन-सहन, साथ में पतिव्रता पत्नी और जिनके आंगन में महकते हुए दो फूल- पुत्र हर्ष, पुत्री जीवनणी।
किन्तु किस्मत का खेल- अचानक गंगो सिंह जी और उनकी पत्नी स्वर्ग की यात्रा पर निकल पड़े। जाते हुए नन्हे बालक ने वचन के रुप में लिया जीवणी के लिए खुशहालीभरा जीवन, अपार स्नेह, जो नन्हे हर्ष ने पिता को दिया, बहन जीवणी को कलेजे में समा लिया, वहाँ रह गई केवल नन्हे बच्चों का चीत्कार, कलेजों को फाड़ने वाला रूदन।
समय ने दोनों बच्चों के कदम जवानी की दहलीज पर रखे। हर्ष ने बहन जीवणी को बाप का स्नेह माँ का दुलार के साथ जीवणी को बड़ा किया। हर्ष का सम्पूर्ण जीवन जीवणी के लिए जैसे सूर्योदय एवं सूर्यास्त ही था।
अनायात जीवणी से टकराती है खूबसूरत “आभलदे” भाभी के रूप में पसन्द आती है बहन की जिद के आगे हर्ष मुस्किल से रजामन्दी देता है। घर शहनाई की गूँज से भर गया खुशियों की बहारें आई, और नई भाभी पर लुटाया अपार लाड दुलार, किन्तु भाई-बहत के प्यार को भाभी पचा न सकी, रास न आया, और उसकी भावनाओं में जन्मे द्वेष, ईर्ष्या, जलन और क्लेश ने दिखाया एक अनहोना दिन।
सरोवर के किनारे जब जीवणी भाभी को मटका उठाने के लिए कहती है- तो भाभी का तीर सा ताना- जीवणी के जीवन में सैलाब लेकर आया- बहा ले गया माँ दुर्गा की शरण में, भाई हर्ष को जब पता लगा मेरी लाडो, लाडेसर, लाडली माँ की शरण में वो बहन को लेने के लिए भागा।
क्या भाई बहन को घर वापस ला सका?
क्या भाई खुद वापस आया?
क्या बहन जीवणी मंजील पा सकी?
क्या उस भाभी को सजा मिली, जो भाई-बहन के स्नेही जीवन में कलंक की सूत्रधार थी?
क्या ताना मारा था जीवणी को भाभी ने?
इन सभी सवालों के जवाबों के लिए आप सभी आमत्रित हैं। ....... देखिये ....... “जय जीण माता”।
[From the official press booklet]