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Doli (1947)

  • LanguageHindi
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डोली देखी और बोल बड़े सब "गोरी भई पराई"..... एक भारतीय नारी के लिए जीवन का आदि भी है, और एक दृष्टिकोण से अंत भी !

लज्जा नारी की दृष्टि को झुकाकर उसे उसमें बिठाती है, शील उसी के पर्दों को पहाड़ बनाकर उसके भावी जीवन की सीमायें बान्ध देता है, इन्हीं उपरोक्त बातों को लेकर "डोली" की कहानी का प्रारम्भ होता है।

रोशन के आखें थीं. - किन्तु यह रासरंगमय संसार उन आंखों के लिये एक उजाड़ खण्डहर से कम न था। जीवन पथ के कटीले मार्ग में उलझता-बचता-गिरता पड़ता चला जा रहा था-किन्तु रानी अंधी थी! जगमगाती बब्बई के अन्धेरे में ठोकरें खाना ही उसके दुर्भाग्य में बदा था। एक दिन मोटर के झपेटे में आकर रानी का जीवननाटक समाप्त ही हो चला था, कि रोशन ने उसे दौड़कर बचा लिया।

अन्धी को सहारा मिल गया और रोशन को मिली उसके निष्प्राण नेत्रों में संसार की सरसता और जीवन की सार्थकता।

समय के साथ साथ अन्धी का सहारा उसके जीवन की एक आवश्यकता बन गया और रोशन के जीवन की सरसता अन्धी स्वयं बन गई।

एक दिन संध्या समय रोशन अपोलो बन्दर पर खड़ा जीवन के आकाश पाताल के बीच दूर सामने दृष्टि जमाए अपने इस प्रेम और जीवन में पग पग पर आने वाले झकोलों पर सोच ही रहा था, कि उसे पास ही किसी के पानी में गिरने का शब्द और उस पर दर्शकों का बढ़ता हुआ शोर सुनाई दिया।

कोई पानी में मृत्यु से लड़ रहा था, यह देख रोशन बिना सोचे समझे पानी में कूद पड़ा।

गोता खाने वाले को कभी 2 अनमोल मोती समुद्र की गोद से मिल जाते हैं, और कभी 2 कंकड़ पत्थर।

रोशन ने जिस व्यक्ति को पानी से निकाला वे थे एक राय साहब-राय साहब  क्या थे, अनमोल मोती या निरे पत्थर, या इन दोनो से बढ़कर कुछ और?

रुपा राय साहब की इकलौती लड़की थी, धनाढ्य परिवार में जन्मी और बाप के लाड़़ प्यार पर फल कर बड़ी हुआी थी। यूरोप देख न सकी थी, किन्तु सर से पाव तक यूरोप की मुंह बोलती तस्वीर थी, और साथ ही डाक्टर कैलाश के प्रेम का भूत सर पर सवार था।

आखों का (स्पेशलिस्ट) डाक्टर कैलाश रानी की आंखों को ठीक करने का विश्वास दिलाता है, किन्तु आवश्यकता है रुपये की, दौलत की!

रोशन की सम्पत्ति को केवल उसका प्रेम और मनुष्यत्व भरा हृदय था - दौलत उस बेचारे के पास कहां थी! फिर भी उसने इस गुत्थी को ज्यों सुलझा ही दिया - परन्तु कैसे?

रानी के नेत्रों की ज्योति रोशन के लिये जेल खाने का अन्धकार बन कर आई और कैलाश के लिये दिल की चांदनी। लेकिन कैलाश तो रूपा की आंखों का तारा था - फिर? रानी ने रोशन को आंखों से नहीं देखा था; केवल हृदय से पहचाना था। वह उसे अन्धकार में ढूंढ रही थी और इस खोज में कैलाश अपने प्रेम का दीपक दिखा कर उसकी सहयाता कर रहा था।

इधर वह जीवन के एक नए चैराहे पर आ पहुंची थी - उधर रोशन जेल से छूटकर रानी की तलाश में मारा मारा फिर रहा था।

रानी की बूढी मां की अंतिम सांसे उसे जब रानी के विषय में कुछ न बता सकीं - तब

होनी रानी को जीवन पथ पर बहुत आगे ले जा चुकी थी- क्या वह वहां से लौट सकी?

रोशन, कैलाश और रूपा इनमें से कौन 2 अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल हुये?

यदि आज आपके जीवन में यही मनोविज्ञानिक प्रश्न एक मानसिक वेदना बने हुए है, तो आइये "डोली" इनका उत्तर देगी।

(From the official press booklet)