बम्बई शहर में आराम की ज़िन्दगी बिताने के लिये एक इन्सान का दिल चाहता है। खास तौर से जवान लड़के और लड़किया जो धन्धे व्यापार की तलाश में या फ़िल्मी हीरो हीरोइन बनने के शौक में माँ बाप की आज्ञा लिये बिना कुछ रुपये पैसे लेकर या ज़ेबरात चुरा कर भाग आते हैं। और फिर जब बोम्बे सैन्ट्रल रेलवे स्टेशन पर उतरते है तो बदमाश लोग फौरन भांप लेते हैं कि ये नया आदकी बम्बई में किस लिये आया है। ये जेब कतरे और चारसौ बीस लोग नये आदमी को अपने फंदे में फांस लेते है। बिलकुल उसी तरह मनमोहन वकील जो शराफ़त का डंका पीट कर एक अच्छे वकील की तरह बम्बई में रहता है और रोज़ बोम्बे सैन्ट्रल स्टेशन पर जा कर एक नई सोने की चिड़िया फंसा कर ले आता है और आराम की जिन्दगी व्यतीत करता है।
एक दिन राजू बोम्बे सैन्ट्रल स्टेशन पर आकर उतरता है और मदन मोहन वकील अपने गेंग के साथ रहकर उसे अपने जाल में फँसा लेता है। राजू भी इन लों की मीठी बातों में फंस जाता है और मदन मोजन वकील के हिल रेस्टोरैन्ट नामक होटल में जाकर रहने लगता है। धीरे धीरे थोड़े दिनों में ही मदन मोहन वकील बना बना कर राजू के सब रूपये खा जाते है। राजो को दिन में तारे नज़र आने लगते हैं। वो इतना परेशान हो जाता है कि कुछ सोच नहीं सकता, वो एक दिन मदन महोन वकील को पुलिस के हाथों पकड़वा देने की धमकी देता है। मगर छटा हुआ बदमाश वकील कहाँ उसकी बन्दर घुड़कियों में आने वाला है। खैर एक दिन उसे यह भी मालूम होता है कि राजू उसकी भतीजी माला से प्रेम करता है। ये गुप्त प्रेम कालिज में पढ़ने के वक्त से चला आ रहा है। मानो जले पर नमक गिर गया हो। मदन मोहन के गुस्से का ठिकाना नहीं रहता वो एकदम भड़क उठता है और विचार करता है कि उसके भविष्य के प्लान सब फेल हो जायेंगे जैसा कि वो चाहता है कि माला की शादी एस.पी. रमेश के भतीजे प्रेम कुमार के साथ हो जाये ताकि भविष्य की सब आफ़ते हल्की हो जायें। वो समझ जाता है कि राजू इसके रास्ते का कांटा बन गया है तगर मदन मोहन वकील के काले कारनामों का भांडा फोड़ होता है। यह सब आब बुधौरिया ब्रदर्स की फिल्म बाम्बे सैन्ट्रल में सुनहरी परदे पर देखिये।
[from the official press booklet]