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इन्सान मर जाता है, परन्तु उसकी हिम्मत और वीरता सदा जीवित रहती है। चैबीस घंटे एक ऐसे ही पोलीस इन्सपेक्टर की कहानी है। जिस ने अपने कर्तव्य की खातर सर घडकि बाज़ी लगा दी।
बड़े बड़े शहरों से दूर पहाड़ की गोदों में नुरपुर की बस्ती तरह तरह की बदमाशीओं का अड्डा बनी हुई हैं। आये दिन चोरी चकारी और लूट मार की घटनायें होती रहती है। पुलिस बड़े बड़े यत्न करके हार चुकी हैं। ऐसे हालात में सेन्ट्रल पोलीस हेड क्वाटर अपने तजरबेकार इन्सपेक्टर रांजन को नूरपुर की बस्ती में भेजती है। इन्सपेक्टर नाना प्रकार के रूप धारण करके शहर की असली हालत मालूम करता है और इस नतीजे पर पहोंचता है कि इन सब के पीछे नूरपुर के मान्य शहरी कुंवरसाहब का हाथ है। परन्तु सबूत न होने के कारण उसे रिगरफ्तार नहीं किया जा सकता। भीतर ही भीतर दोनों में सख्त दुश्मनी हो जाती है। इन्सपेक्टर जुआबाज़ी के सब अड्डे बंद कर देता है। धडा धड गिरफ्तारी होती है, लेकिन फिर भी कुवर पर कोई आंच नहीं आती।
ठेकेदार की चंचल लडकी इन्सपेक्टर से प्रेम करती है। ये बात कुवर को और भी बुरी लगती है, क्योंकि आशा उसकी होने वाली मंगेतर है। बात यहां तक बडती है कि कुवर इन्यपेक्टर को कत्ल कराने की कोशीश करता है। किन्तु इन्यपेक्टर बच जाता है और उसे कुवर के विरुद्ध एक बडा सबूत हाथ आ जाता है। कुवर गिरफ्तार कीया जाता है। आदालत उसे 10 साल की सजा देती है। कुवर इन्यपेक्टर को चेलेन्ज करता है। कि वो 10 साल के बाद आऐगा और उसके खून से अपना बदला लेगा। कुवर सेन्ट्रल जेल में पहोंचने से पहले ही चलती गाडी से भाग जाता है।
इन्सपेक्टर को उसकी शानदार विजय पर तरक्की मिलती है। रवानगी से 2 दिन पहले इन्सपेक्टर और आशा की शादी हो जाती है। खुशियों की घड़ी है। सारा शहर इन्सपेक्टर को शुभ कामनाओ के साथ विदा करता है, कि अचानक उसे तार मिलता है। जिससे सारे मंडप में शनाट्टा छा जाता है। अरमानी भरी दुल्हन हैरान हो जाती है। यह तार कुवर ने भेजा है, वो 11 बजे की गाडी से आ रहा है, अपना बदला लेने के लीये। इन्सपेक्टर को खत्म करने।
लेकिन इन्सपेक्टर मैदान छोड जायगा? कानून का सिपाही गुंडागरदी का राज्य होने देगा? मौत अवश्य है, लेकिन वो लडेगा, अकेला, ताकि इन्सान ज़िन्दा रहे। उसके कर्तव्य पे आंच न आए।